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आत्म-कथा : भाग ५
समनकी बात एक क्षणमें चारों ओर फैल गई और लोग कहते थे कि ऐसा दृश्य मोतीहारीमें पहले कभी नहीं देखा गया था। गोरखबाबूके घर और अदालतमें खचाखच भीड़ हो गई। खुशकिस्मतीसे मैंने अपना सारा काम रातको ही खतम कर लिया था, इससे उस भीड़का में इंतजाम कर सका। इस समय अपने साथियोंकी पूरी-पूरी कीमत देखनेका मुझे मौका मिला। वे लोगोंको नियमके अंदर रखनेमें जुट पड़े। अदालतमें मैं जहां जाता वहीं लोगोंकी भीड़ मेरे पीछे-पीछे आती। कलेक्टर, मजिस्ट्रेट, सुपरिटेंडेंट वगैरा के और मेरे दरमियान भी एक तरहका अच्छा संबंध हो गया। सरकारी नोटिस इत्यादिका अगर मैं बाकायदा विरोध करता तो कर सकता था; परंतु ऐसा करनेके बजाय मैंने उनके तमाम नोटिसोंको मंजूर कर लिया। फिर राज-कर्मचारियोंके साथ मेरे जाती ताल्लुकातमें जिस मिठासका मैंने अवलंबन किया उससे वे समझ गये कि मैं उनका विरोध नहीं करना चाहता। बल्कि उनके हुक्मका सविनय विरोध करना चाहता हूं। इससे वे एक प्रकारसे निश्चित हुए। मुझे दिक करनेके बजाय उन्होंने लोगोंको नियममें रखनेके काममें मेरी और मेरे साथियोंकी सहायता खुशीसे ली; पर साथ ही वे यह भी समझ गये कि आजसे हमारी सत्ता यहांसे उठ गई। लोग थोड़ी देरके लिए सजाका भय छोड़कर अपने नये मित्रके प्रेमकी सत्ताके अधीन हो गये।
यहां पाठक याद रखें कि चंपारनमें मुझे कोई पहचानता न था। किसान लोग बिलकुल अनपढ़ थे। चंपारन गंगाके उस पार, ठेठ हिमालयकी तराईमें नेपालके नजदीकका हिस्सा है। उसे नई दुनिया ही कहना चाहिए। यहां कांग्रेसका नाम-निशान भी नहीं था, न उसके कोई मेंबर ही थे। जिन लोगोंने कांग्रेसका नाम सुन रक्खा था वे उसका नाम लेते हुए और उसमें शरीक होते हुए डरते थे; पर आज वहां कांग्रेसके नामके बिना कांग्रेसने और कांग्रेसके सेवकोंने प्रवेश किया और कांग्रेसकी दुहाई धूम गई।
__ साथियोंके साथ कुछ सलाह करके मैंने यह निश्चय किया था कि कांग्रेसके नामपर कुछ भी काम यहां न किया जाय। हमको नामसे नहीं कामसे मतलब है। 'कथनीकी--कहनेकी-नहीं, करनीकी' जरूरत है। कांग्रेसका नाम यहां लोगोंको खलता है। इस प्रांतमें कांग्रेसका अर्थ है वकीलोंकी तू-तू, मैं-मैं,