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• आत्म-कथा: भाग ५
का मुझे अपने यहां ठहराना एक असाधारण बात थी ।
कृपलानीजीने बिहारकी और उसमें तिरहुत-विभागकी दीन दशा का वर्णन किया और मुझे अपने कामकी कठिनाईका अंदाज बताया। कृपलानीजीने विहारियोंके साथ गाढ़ा संबंध कर लिया था। उन्होंने मेरे कामकी बात वहांके लोगोंसे कर रक्खी थी। सुबह होते ही कुछ वकील मेरे पास आये। उनमेंसे रामनवमीप्रसादजीका नाम मुझे याद रह गया है। उन्होंने अपने इस अाग्रहके कारण मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा था--
“आप जिस कामको करने यहां आये हैं वह इस जगहसे नहीं हो सकता। आपको तो हम-जैसे लोगोंके यहां चलकर ठहरना चाहिए। गयाबाबू यहांके मशहूर वकील हैं। उनकी तरफसे मैं आपको उनके यहां ठहरनेका अाग्रह करता हूं। हम सब सरकारसे तो जरूर डरते हैं; परंतु हमसे जितनी हो सकेगी आपकी मदद करेंगे। राजकुमार शुक्लकी बहुतेरी बातें सच हैं। हमें अफसोस है कि हमारे अगुप्रा आज यहां नहीं हैं । बाबू बृजकिशोरप्रसादको और राजेंद्रप्रसादको मैंने तार दिया है। दोनों यहां जल्दी आ जायंगे और आपको पूरी-पूरी वाकफियत और मदद दे सकेंगे। मिहरबानी करके आप गयाबाबूके यहां चलिए ।”
। यह भाषण सुनकर मैं ललचाया; पर मुझे इस भयसे संकोच हुआ, मुझे ठहरानेसे कही गयाबाबूकी स्थिति विषम न हो जाय; परंतु गयाबाबूने इसके विषयमें मुझे निश्चित कर दिया ।
___ अब मैं गयाबाबूके यहां ठहरा। उन्होंने तथा उनके कुटुंबी-जनोंने मुझपर बड़े प्रेमकी वर्षा की।
__ बृजकिशोरबाबू - दरभंगासे और राजेंद्रबाबू पुरीसे यहां आये। यहां लो मैंने देखा तो वह लखनऊवाले बृजकिशोरप्रसाद नहीं थे। उनके अंदर बिहारीकी नम्रता, सादगी, भलमंती और असाधारण श्रद्धा देखकर मेरा हृदय हर्षसे फूल उठा। बिहारी वकील-मंडलका उनके प्रति आदरभाव देखकर मुझे प्रानंद और आश्चर्य दोनों हुए।
तबसे इस वकील-मंडलके और मेरे जन्म-भरके लिए स्नेह-गांठ बंध गई। बृजकिशोरबाबूने मुझे सब बातोंसे वाकिफ कर दिया। वह गरीब किसानोंकी तरफसे मुकदमे लड़ते थे। ऐसे दो मुकदमे उस समय चल रहे थे। ऐसे मुकदमों