Book Title: Atmakatha
Author(s): Mohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 424
________________ अध्याय ११ : गिरमिट प्रथा पर अब मैंने यह देखा कि लोगोंमें इतनी जाग्रति आगई है कि अब यह बंद की जा सकती है, इसलिए मैं कितने ही नेताओंसे इस विषय में मिला, कुछ अखबारों में इस संबंध में लिखा और मैंने देखा कि लोकमत इस प्रथाका उच्छेद कर देने के पक्षमें था । मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्या इसमें सत्याग्रह का कुछ उपयोग हो सकता है ?” मुझे उसके उपयोगके विषय में तो कुछ संदेह नहीं था; परंतु यह बात मुझे नहीं दिखाई पड़ती थी कि उपयोग किया कैसे जाय । इस बीच वाइसरायने 'समय आनेपर ' इन शब्दोंका अर्थ भी स्पष्ट कर दिया । उन्होंने प्रकट किया कि दूसरी व्यवस्था करनेमें जितना समय लगेगा, उतने समय में यह प्रथा निर्मूल कर दी जायगी । इसपरसे फरवरी १९१७ : में भारतभूषण मालवीयजीने गिरमिट प्रथाको कतई उठा देनेका कानून पेश करने की इजाजत बड़ी धारा- सभा में मांगी, तो वायसरायने उसे नामंजूर कर दिया । तब इस मसले को लेकर मैंने हिंदुस्तान में भ्रमण शुरू कर दिया । भ्रमण शुरू करने के पहले वाइसरायसे मिल लेना मैंने उचित समझा । उन्होंने तुरंत मुझे मिलने का समय दिया । उस समय मि० मेफी, अब सर जान मेफी, उनके मंत्री थे । मि० मेफीके साथ मेरा ठीक संबंध बंध गया था । लार्ड चेम्सफोर्ड के साथ इस विषयपर संतोषजनक बातचीत हुई। उन्होंने निश्चयपूर्वक तो कुछ नहीं कहा -- परंतु उनसे मदद मिलनेकी आशा जरूर मेरे मन में बंधी । ४०७ भ्रमणका आरंभ मैंने बंबईसे किया । बंबई में सभा करनेका जिम्मा मि० जहांगीरजी पेटिटने लिया । इंपीरियल सिटीजनशिप असोसियेशन के नामपर सभा हुई । उसमें जो प्रस्ताव उपस्थित किये जानेवाले थे, उनका मसविदा बनाने के लिए एक समिति बनाई गई । उसमें डा० रीड, सर लल्लूभाई शामलदास, नटराजन इत्यादि थे । मि० पेटिट तो थे ही। प्रस्तावमें यह प्रार्थना की गई थी कि गिरमिट प्रथा बंद कर दी जाय; पर सवाल यह था कि कब बंद की जाय ? इसके संबंध में तीन सूचनायें पेश हुई -- ( १ ) जितनी जल्दी हो सके', :(R.) 'इकत्तीस जुलाई', और (३) 'तुरंत' । 'इकत्तीस जुलाई' वाली सूचना मेरी थी । मुझे तो निश्चित तारीखकी जरूरत थी कि जिससे उस मियादतक यदि कुछ न हो तो इस बातकी सूझ पड़ सके कि आगे क्या किया जाय और क्या किया जा

Loading...

Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518