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अध्याय ५ : तीसरे दर्जेकी फजीहत
ड्योढ़े दर्जेका किराया वसूल किया। मुझे यह अन्याय बहुत अखरा ।
सुबह हम मुगलसराय आये । मगनलालको तीसरे दर्जे में जगह मिल गई थी। वहां मैंने टिकट कलेक्टरको सब हाल सुनाया और इस घटनाका प्रमाण पत्र उससे मांगा । उसने इन्कार कर दिया । मैंने रेलवेके बड़े अफसरको अधिक भाड़ा वापस मिलने के लिए दरख्वास्त दी । उसका इस प्राशयका उत्तर मिला-" प्रमाण-पत्रके बिना अधिक भाड़ेका रुपया लौटानेका रिवाज हमारे यहां नहीं है, परंतु यह ग्रापका मामला है, इसलिए आपको लौटा देते हैं । बर्दवान से मुगलसरायतकका अधिक किराया वापस नहीं दिया जा सकता ।
इसके बाद तीसरे दर्जे के सफरके इतने अनुभव हुए हैं कि उनकी एक पुस्तक बन सकती है; परंतु प्रसंगोपात्त उनका जिक्र करनेके उपरांत इन अध्यायोंमें उनका समावेश नहीं हो सकता । शरीर प्रकृतिकी प्रतिकूलताके कारण मेरी तीसरे दर्जेकी यात्रा बंद हो गई। यह बात मुझे सदा खटकती रहती है और खटकती रहेगी । तीसरे दर्जेके सफर में कर्मचारियोंकी 'जो हुक्मी की जिल्लत तो उठानी ही पड़ती है; परंतु तीसरे दर्जेके यात्रियोंकी जहालत, गंदगी, स्वार्थ भाव और
ज्ञानका भी कम अनुभव नहीं होता । खेदकी बात तो यह है कि बहुत बार तो मुसाफिर जानते ही नहीं कि वे उद्दंडता करते हैं या गंदगी बढ़ाते हैं या स्वार्थ सिद्धि चाहते हैं । वे जो कुछ करते हैं वह उन्हें स्वाभाविक मालूम होता है । और इधर हम, जो सुधारक' कहे जाते हैं, उनकी बिलकुल पर्वाह नहीं करते ।
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कल्याण जंक्शन पर हम किसी तरह थके-मांदे पहुंचे । नहानेकी तैयारी की । मगनलाल और मैं स्टेशनके नलसे पानी लेकर नहाये । पत्नी के लिए मैं कुछ तजवीज कर रहा था कि इतनेमें भारत सेवक समिति के भाई कौलने हमको पहचाना। वह भी पूना जा रहे थे। उन्होंने कहा-- " इनको तो नहाने के लिए दूसरे दर्जेके कमरेमें ले जाना चाहिए। उनके इस सौजन्य से लाभ उठाते हुए मुझे संकोच हुआ । मैं जानता था कि पत्नीको दूसरे दर्जेके कमरेसे लाभ उठानेका अधिकार न था; परंतु मैंने इस अनौचित्यकी और उस समय प्रांखें मूंद लीं । सत्य के पुजारीको सत्यका इतना उल्लंघन भी शोभा नहीं देता । पत्नीका प्राग्रह नहीं था कि वह उसमें जाकर नहावे; परंतु पतिके मोहरूपी सुवर्णपात्रने सत्यको ढांक लिया था ।