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आत्म-कथा : भाग ४
होता । इन लड़कों के साथ आपके लड़के रहेंगे तो इसका बुरा नतीजा होगा । उन श्रावारा लड़कों की सोवत इनको लगेगी तो ये बिगड़े बिना कैसे रहेंगे ?"
इनको सुनकर मैं थोड़ी देर के लिए सोचने पड़ा या नहीं, यह तो मुझे इस समय याद नहीं; परंतु अपना उत्तर मुझे याद है । मैंने जवाब दिया-" अपने लड़कों और इन आवारा लड़कों में भेद-भाव कैसे रख सकता हूं ? अभी तो दोनोंकी जिम्मेदारी मुझपर है। ये युवक मेरे बुलावे यहां श्राये हैं । यदि मैं रुपये दे दूं तो ये आज ही जोहान्सबर्ग जाकर पहले की तरह रहने लग जायेंगे । आश्चर्य नहीं, यदि उनके माता-पिता यह समझते हों कि उन लड़कोंने यहां चाकर मुझपर बहुत मिहरवानी की है। यहां लाकर ये सुविधा उठाते हैं, यह तो ग्राम और मैं दोनों देख रहे हैं । सो इस संबंध मेरा वर्म मुझे स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मुझे उन्हें यहीं रखना चाहिए। मेरे लड़के भी उन्हीं के साथ रहेंगे । फिर क्या जसे ही मेरे लड़कों को यह भेद-भाव सिखायें कि वे औरों ऊंचे दर्जे के हैं ? ऐसा विचार उनके दिमाग में डालना मानो उन्हें उलटे रास्ते ले जाना है । इस स्थिति में रहने से उनका जीवन बनेगा, खुद-ब-खुद सारासारकी परीक्षा करने लगेंगे। हम यह क्यों न मानें कि उनमें यदि सचमुच कोई गुण होगा तो उलटा उसका असर उनके साथियोंपर होगा ? जो कुछ भी हो; पर मैं तो उन्हें यहांसे नहीं हटा सकता और ऐसा करने में यदि कुछ जोखम है तो उसके लिए हमें तैयार रहना चाहिए । save fro herबेक सिर हिलाकर रह गये ।
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यह नहीं कह सकते कि इस प्रयोगका नतीजा बुरा हुआ । मैं नहीं मानता था कि मेरे लड़कों को इससे कुछ नुकसान हुआ । हां, लाभ होता हुआ तो चलता मैंने देखा है । उनमें वा यदि कुछ अंश रहा होगा तो वह सर्वथा च गया, वे सबके साथ मिल-जुलकर रहना सीखे, वे तपकर ठीक हो गये । इससे तथा ऐसे दूसरे अनुप मेरा यह बयान बना कि यदि मांare ठीक-ठीक निगरानी रख सकें तो उनके भले और बुरे लड़कों के एक मान रहने और पढ़ने से अच्छे किसी प्रकार नुकसान नहीं हो सकता । अपने लड़कोंको संदूकानें बंदकर रखने से वे शुद्ध ही रहते हैं और बाहर से गड़ जाते हैं, यह कोई नियम नहीं है । हां, यह बात जरूर है कि जहां अनेक प्रकारके