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आत्म-कथा: भाग ४
तो मुझे उसमें दूध जैसा ही स्वाद आया । अब मैंने 'पानी पीकर जात पूछने, ' जैसी बात की । पी चुकनेके बाद बोतलपर लगी चिटको पढ़ा तो मालूम हुआ कि यह तो दूधकी ही बनावट है । इसलिए एक ही बार पीकर उसे छोड़ देना पड़ा । लेडी राबर्ट्सको मैंने इसकी खबर की और लिखा कि आप जरा भी चिंता न करें । सुनते ही वह मेरे घर दौड़ ग्राई और इस भूलपर बड़ा अफसोस प्रकट किया। उनके मित्रने बोतलवाली चिट पढ़ी ही नहीं थी । मैंने इस भली वहनको तसल्ली दी और इस बात के लिए उनसे माफी मांगी कि जो चीज इतने कष्टके साथ ग्रापने भिजवाई, उसे मैं ग्रहण न कर सका । और मैंने उनसे यह भी कह दिया कि मैंने तो अनजानमें यह बुकनी ली है, सो इसके लिए मुझे परचाताप या प्रायश्चित्त करनेका कोई कारण नहीं है ।
लेडी राबर्ट्सके साथ और भी मधुर संस्मरण हैं तो, पर उन्हें मैं यहां छोड़ ही देना चाहता हूं। ऐसे तो बहुत-से संस्मरण हैं जिनका महान् श्रानंद मुझे बहुत विपत्तियों और विरोधमें भी मिल सका है। श्रद्धावान् मनुष्य ऐसे मीठे संस्मरणोंमें यह देखता है कि ईश्वर जिस तरह दुःख रूपी कड़ई औषध देता है। उसी तरह वह मैत्रीके मीठे अनुपान भी उसके साथ देता है ।
दूसरी बार जब डाक्टर एलिन्सन देखने आये तो उन्होंने और भी चीजों के खानेकी छुट्टी दी और शरीरमें चर्बी बढ़ानेके लिए मूंगफली आदि सूखे मेवोंकी चीजोंका मक्खन अथवा जैतूनका तेल लेनेके लिए कहा । कच्चे शाक मुग्राफिक न हों तो उन्हें पकाकर चावलके साथ लेनेकी सलाह दी । यह तजवीज मुझे बहुत मुआफिक हुई ।
परंतु बीमारी अभी निर्मूल न हुई थी । सम्हाल रखने की जरूरत तो अभी थी ही। अभी बिछौनेपर ही पड़ा रहना पड़ता था। डाक्टर मेहता बीच-बीच में आकर देख जाया करते थे और जब आते तभी कहा करतेअगर मेरा इलाज कराओ तो देखते-देखते आराम हो जाय ।
यह सब हो रहा था कि एक रोज मि० राबर्ट्स मेरे घर आये और मुझे जोर देकर कहा कि आप देस चले जाओ । उन्होंने कहा, "ऐसी हालत में आप नेटली हर्गिज नहीं जा सकते । कड़ाकेका जाड़ा तो अभी आगे आनेवाला है । मैं तो आग्रहके साथ कहता हूं कि आप देस चले जाये और वहां जाकर चंगे हो