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अध्याय २२ : 'जाको राखे साइयां'
मरहम-पट्टीसे भी इतना समय तो लग ही जायगा ।
इससे घरेलू इलाजपर मेरा विश्वास और उसके प्रयोग करने का मेरा साहस बढ़ गया । इसके बाद तो मैंने अपने प्रयोगोंकी सीमा बहुत बड़ा दी थी। जख्म, बुखार, अजीर्ण, पीलिया इत्यादि रोगोंपर मिट्टी, पानी और उपवासके प्रयोग कई छोटे-बड़े स्त्री-पुरुषोंपर किये और उनमें अधिकांशमें सफलता मिली। इतनेपर भी जो हिम्मत इस विषय में मुझे दक्षिण अफ्रीकामें थी वह अब नहीं रही और अनुभवसे ऐसा भी देखा गया है कि इन प्रयोगोंमें खतरा तो है ही ।
इन प्रयोगोंके वर्णनमें मेरा हेतु यह नहीं है कि इनकी सफलता सिद्ध करूं। मैं ऐसा दावा नहीं कर सकता कि इनमेंसे एक भी प्रयोग सर्वांसमें सफल हुआ हो, पर कोई डाक्टर भी तो अपने प्रयोगोंके लिए ऐसा दावा नहीं कर सकता। मेरे कहने का भाव सिर्फ यही है कि जो लोग नये अपरिचित प्रयोग करना चाहते हैं उन्हें अपनेसे ही उसकी शुरूआत करनी चाहिए। ऐसा करने से सत्य जल्दी प्रकाशित होता है और ऐसे प्रयोग करनेवालेको ईश्वर खतरोंसे बचा लेता है ।
मिट्टीके प्रयोगोंमें जो जोखिम थी यही यूरोपियन लोगोंके निकट समागममें भी थी। भेद सिर्फ दोनोंके प्रकारका था। परंतु इन खतरोंका तो मेरे मनमें विचारतक नहीं आया।
पोलकको मैंने अपने साथ रहनेका निमंत्रण दिया और हम सगे भाईकी तरह रहने लगे। पोलकका विवाह जिस देवीके साथ हुआ उससे उनकी मैत्री बहुत समयसे थी। उचित समयपर विवाह कर लेनेका निश्चय दोनोंने कर रक्खा था; परंतु मुझे याद पड़ता है कि पोलक कुछ रुपया जुटा लेनेकी फिराकमें थे। रस्किनके ग्रंथोंका अध्ययन और विचारोंका मनन उन्होंने मुझसे बहुल अधिक कर रक्खा था; परंतु पश्चिमके वातावरण में रस्किनके विचारोंके अनुसार जीवन वितानेकी कल्पना मुश्किलते ही हो सकती थी। एक रोज मैंने उनसे कहा, "जिसके साथ प्रेम-गांठ बंध गई है उसका वियोग केवल धनाभावसे सहना उचित नहीं है। इस तरह अगर विचार किया जाय तब तो कोई गरीब बेचारा विवाह कर ही नहीं सकता। फिर आप तो मेरे साथ रहते हैं। इसलिए घर-खर्चका खयाल ही नहीं है। सो मुझे तो यही उचित मालूम पड़ता है कि आप शादी कर लें।"
पोलकसे मुझे कभी कोई बात दुवारा कहनेका मौका नहीं आया। उन्हें