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अध्याय २५ : हृदय-मंथन
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पाठक यह न समझ लें कि ये लोग पेशेवर सैनिक थे। कर्नल वायलीका पेशा था वकालत | कर्नल स्पाक्स कसाईखानेके एक प्रसिद्ध मालिक थे । जनरल मैकेंजी नेटालके एक मशहूर किसान थे । ये सब स्वयं सेवक थे और स्वयं सेवक के रूपमें ही उन्होंने सैनिक शिक्षा और अनुभव प्राप्त किया था ।
जिन रोगियोंकी शुश्रूषाका काम हमें सौंपा गया था, वे लड़ाईमें घायल लोग न थे । उनमें एक हिस्सा तो था उन कैदियोंका जो शुबहपर पकड़े गये थे । जनरलने उन्हें कोड़े मारने की सजा दी थी। इससे उन्हें जरूम पड़ गये थे और उनका इलाज न होनेके कारण पक गये थे । दूसरा हिस्सा था उन लोगोंका, जो जुलू-मित्र कहलाते थे । ये मित्रतादर्शक चिह्न पहने हुए थे। फिर भी इन्हें सिपाहियोंने भूलसे जख्मी कर दिया था ।
इसके उपरांत खुद मुझे गोरे सिपाहियों के लिए दवा लानेका और उन्हें दवा देनेका काम सौंपा गया था । पाठकोंको याद होगा कि डाक्टर बूथके छोटेसे अस्पताल में मैंने एक सालतक इसकी तालीम हासिल की थी । इसलिए यहां मुझे दिक्कत न पड़ी। इसकी बदौलत बहुतेरे गोरोंसे मेरा परिचय हो गया । परंतु युद्ध-स्थलपर गई हुई सेना एक ही जगह नहीं पड़ी रहती । जहांजहांसे खतरेके समाचार आते वहीं जा दौड़ती। उनमें बहुतेरे तो घुड़ सवार थे । हमारी फौज अपने पड़ावसे चली। उसके पीछे-पीछे हमें भी डोलियां कंधोंपर रखकर चलना था । दो-तीन बार तो एक दिनमें चालीस मीलतक चलनेका प्रसंग आ गया था। यहां भी हमें तो बस वही प्रभुका काम मिला । जो जुलू - मित्र भूल से घायल हो गये थे उन्हें डोलियोंमें उठाकर पड़ावपर लेजाना था और वहां उनकी सेवा-शुश्रूषा करनी थी ।
२५ हृदय-मंथन
'जुलू - विद्रोह में मुझे बहुतेरे अनुभव हुए और विचार करनेकी बहुत सामग्री मिली। बोर-संग्राम में युद्धकी भयंकरता मुझे उतनी नहीं मालूम हुई जितनी इस बार । यह लड़ाई नहीं, मनुष्यका शिकार था । अकेले मेरा ही नहीं,