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आत्म-कथा : भाग ३
" मेरी बात न उन्होंने कहा—तुम देख ही रहे हो । पर मैं उसे भूलमें न पड़ने दूंगा ।
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'तुम्हारा प्रस्ताव मेरे ध्यानमें है । यहांकी जल्दी तो
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"
अब सब ख़तम हुआ न ? सर फिरोजशाह बोले ।
"1
अभी तो दक्षिण अफ्रीकाका प्रस्ताव बाकी है न ? मि० गांधी बैठे गोखले बोल उठे ।
"
'आपने उस प्रस्तावको देख लिया है ? सर फिरोजशाहने पूछा । - 'हां, जरूर ।
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" आपको ठीक जंचा है ?
कबके राह देख रहे हैं ।
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भूलिएगा ।
"हां, सब ठीक है ।
"
"
'तो गांधी, पढ़ो तो ।
"
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,"
मैंने कांपते हुए पढ़ सुनाया । गोखलेने उसका समर्थन किया ।
" सर्वसम्मति से पास " -- सब बोल
उठे ।
"
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'गांधी, तुम पांच मिनट बोलना । वाच्छा बोले ।
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इस दृश्यसे मुझे खुशी न हुई । किसीने प्रस्तावको समझ लेनेका कष्ट
न उठाया । सब भाग-दौड़ में थे । गोखले के देख लेनेसे श्रौरोंने देखने-सुननेकी जरूरत न समझी ।
सुबह हुई ।
मुझे तो अपने भाषण की पड़ी थी। पांच मिनटमें क्या कहूंगा ? मैंने अपनी तरफसे तैयारी तो ठीक-ठीक की थी; परंतु आवश्यक शब्द न सूझते थे । इधर यह निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो लिखित भाषण न पढूंगा । पर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो दक्षिण अफ्रीका में बोलने की जो निःसंकोचता आ गई थी वह यहां खो गई ।
मेरे प्रस्तावका समय आया और सर दीनशाने मेरा नाम पुकारा । मैं खड़ा हुआ; सिर चक्कर खाने लगा। ज्यों-त्यों करके प्रस्ताव पढ़ा। किसी कविने अपनी एक कविता समस्त प्रतिनिधियोंमें बांटी थी । उसमें विदेश जाने और समुद्र यात्रा करनेकी स्तुति की गई थी । मैंने उसे पढ़ सुनाया और दक्षिण अफ्रीका