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अध्याय १८ : गोखलेके साथ एक मास --- २
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यह कहकर उन्होंने कहा- " पापका बदला है मौत । बाइबिल कहती है कि इस मौत से बचनेका मार्ग है ईसाकी शरण में जाना ।"
मैंने भगवद्गीताका भक्ति मार्ग उनके सामने उपस्थित किया, परंतु मेरा यह उद्योग निरर्थक था । मैंने उनकी सज्जनताके लिए उनको धन्यवाद दिया । मुझे संतोष तो न हुआ, फिर भी इस मुलाकातसे लाभ ही हुआ ।
इसी महीने मैंने कलकत्तेकी एक-एक गलीकी खाक छान डाली । प्रायः पैदल ही जाता था । इसी समय मैं न्यायमूर्ति मित्रसे मिला । सर गुरुदास बनर्जी से भी मिला। इन सज्जनोंकी सहायता दक्षिण अफ्रीका कामके लिए आवश्यक थी। राजा सर प्यारीमोहन मुकर्जीके दर्शन भी इसी समय हुए ।
कालीचरण बनर्जीने मुझसे काली मंदिरका जिक्र किया था । उसे देखनेकी प्रबल इच्छा थी । एक पुस्तकमें मैंने वहांका वर्णन भी पढ़ा । सो एक दिन वहां चला गया । न्यायमूर्ति मित्रका मकान उसी मुहल्लेमें था । इस लिए मैं जिस दिन उनसे मिला, उसी दिन कालीमंदिर गया । रास्तेमें बलिदानके बकरोंकी कतार जाती हुई देखी । मंदिरकी गली में पहुंचते ही भिखारियोंकी भीड़ दिखाई दी । बाबा बैरागी तो थे ही। उस समय भी मेरा यह नियम था था कि हट्टे-कट्टे भिखारीको कुछ न दिया जाय; पर भिखारी तो बहुत ही पीछे पड़ गये थे ।
एक बाबाजी एक चौतरेपर बैठे थे । उन्होंने मुझे बुलाया, "क्यों बेटा, कहां जाते हो ? " मैंने यथोचित उत्तर दिया । उन्होंने मुझे तथा मेरे साथीको बैठके लिए कहा। हम बैठ गये ।
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इन बकरोंके बलिदानको आप धर्म समझते हैं
मैंने पूछाउन्होंने कहा- -" जीव हत्याको धर्मं कौन मानेगा ? "
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'तो श्राप यहां बैठेबैठे लोगोंको उपदेश क्यों नहीं देते ?
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'यह हमारा काम नहीं । हम तो यहां बैठकर भगवद्भक्ति करते हैं ।
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पर आपको भक्तिके लिए यही स्थान मिला, दूसरा नहीं ? "
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'कहीं भी बैठें; हमारे लिए सब जगह एकसी है । लोगोंको क्या, वे
तो भेड़-बकरीके झुंडकी तरह हैं, जिधर बड़े हांकें, उधर चले जायं। हम साधुनोंको इससे क्या मतलब ? " बाबाजी बोले ।