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अध्याय १७ : लोकेशनकी होली
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लोकेशनकी होली
रोगियोंकी सेवा-शुश्रूषासे यद्यपि मैं और मेरे साथी फारिग हो गये थे, तथापि इस प्लेग - प्रकरण के बदौलत दूसरे नये काम भी हमारे लिए पैदा हो गये थे । वहांकी म्यूनिसिपैलिटी लोकेशनके संबंध में भले ही लापरवाही रखती हो; किंतु गोरे-निवासियोंके प्रारोग्यके विषय में तो उसे चौबीसों घंटे सतर्क रहना पड़ता था । उनके आरोग्यकी रक्षाके लिए रुपया फूंकने में भी उसने कोताही नहीं की थी । और इस समय तो प्लेगको वहां न फैलने देनेके लिए उसने पानीकी तरह पैसा बहाया । भारतीयों के प्रति इस म्यूनिसिपैलिटी के व्यवहारकी मुझे बहुत शिकायत थी, फिर भी गोरोंकी रक्षा के लिए वह जितनी चिंता कर रही थी उसके प्रति अपना प्रादर प्रदर्शित किये बिना मैं न रह सका और उसके इस शुभ प्रयत्न में मुझसे जितनी मदद हो सकी मैंने की। मैं मानता हूं कि यदि वह मदद मैंने न की होती तो म्यूनिसिपैलिटी को दिक्कत पड़ती और शायद उसे बंदूक बलका प्रयोग करना पड़ता और अपनी इष्ट-सिद्धि के लिए ऐसा करने में वह बिलकुल न हिचकती ।
परंतु ऐसा करनेकी नौबत न आने पाई । उस समय भारतीयोंके व्यवहार से म्यूनिसिपैलिटी के अधिकारी संतुष्ट हो गये और उसके बादका काम बहुत सरल हो गया । म्यूनिसिपैलिटी की मांगको हिंदुस्तानियोंसे पूरा कराने में मैंने अपना सारा प्रभाव खर्च कर डाला था । यह काम भारतीयोंके लिए था तो बड़ा दुष्कर ; परंतु मुझे याद नहीं पड़ता कि किसी एकने भी मेरे वचनको टाला हो । लोकेशन के चारों और पहरा बैठा दिया गया था। बिना इजाजत न कोई अंदर जा पाता था, न बाहर आ सकता था । मुझे तथा मेरे साथियों को बिना रुकावट वहां आने-जाने के लिए पास दे दिये गये थे । म्यूनिसिपैलिटी की तजवीज यह थी कि लोकेशनके सब लोगोंको जोहान्सबर्ग से तेरह मील खुले मैदानमें तंबुओं में रक्खा जाय और लोकेशनमें आग लगा दी जाय । डेरे तंबुझोंका ही क्यों न हो, पर वह एक नया गांव बसाना पड़ा था और वहां खाद्य आदि सामग्रीका प्रबंध