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________________ ५३० आत्म-कथा : भाग ३ " मेरी बात न उन्होंने कहा—तुम देख ही रहे हो । पर मैं उसे भूलमें न पड़ने दूंगा । (1 'तुम्हारा प्रस्ताव मेरे ध्यानमें है । यहांकी जल्दी तो "" 11 " अब सब ख़तम हुआ न ? सर फिरोजशाह बोले । "1 अभी तो दक्षिण अफ्रीकाका प्रस्ताव बाकी है न ? मि० गांधी बैठे गोखले बोल उठे । " 'आपने उस प्रस्तावको देख लिया है ? सर फिरोजशाहने पूछा । - 'हां, जरूर । ८८ 33 " आपको ठीक जंचा है ? कबके राह देख रहे हैं । 21 भूलिएगा । "हां, सब ठीक है । " " 'तो गांधी, पढ़ो तो । " 33 ," मैंने कांपते हुए पढ़ सुनाया । गोखलेने उसका समर्थन किया । " सर्वसम्मति से पास " -- सब बोल उठे । " 73 'गांधी, तुम पांच मिनट बोलना । वाच्छा बोले । A इस दृश्यसे मुझे खुशी न हुई । किसीने प्रस्तावको समझ लेनेका कष्ट न उठाया । सब भाग-दौड़ में थे । गोखले के देख लेनेसे श्रौरोंने देखने-सुननेकी जरूरत न समझी । सुबह हुई । मुझे तो अपने भाषण की पड़ी थी। पांच मिनटमें क्या कहूंगा ? मैंने अपनी तरफसे तैयारी तो ठीक-ठीक की थी; परंतु आवश्यक शब्द न सूझते थे । इधर यह निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो लिखित भाषण न पढूंगा । पर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो दक्षिण अफ्रीका में बोलने की जो निःसंकोचता आ गई थी वह यहां खो गई । मेरे प्रस्तावका समय आया और सर दीनशाने मेरा नाम पुकारा । मैं खड़ा हुआ; सिर चक्कर खाने लगा। ज्यों-त्यों करके प्रस्ताव पढ़ा। किसी कविने अपनी एक कविता समस्त प्रतिनिधियोंमें बांटी थी । उसमें विदेश जाने और समुद्र यात्रा करनेकी स्तुति की गई थी । मैंने उसे पढ़ सुनाया और दक्षिण अफ्रीका
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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