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________________ अध्याय १५ : कांग्रेसमें २२ प्राया। अंग्रेजी भाषाका दौर-दौरा भी देखा। इससे उस समय भी दुःख हुआ था। मैंने देखा कि एक आदमीके करनेके काममें एकसे अधिक आदमी लग जाते और कुछ जरूरी कामोंको तो कोई भी नहीं करता था । मेरा मन इन तमाम बातोंकी आलोचना किया करता था। परंतु चित्त उदार था--इसलिए, यह मान लेता कि शायद इससे अधिक सुधार होना असंभव होगा। फलत: किसीके प्रति मनमें दुर्भाव उत्पन्न न हुआ। १५ कांग्रेसमें कांग्रेसकी बैठक शुरू हुई। मंडपका भव्य दृश्य, स्वयंसेवकोंकी कतार, मंचपर बड़े-बूढ़ोंके समुदायको देखकर मैं दंग रह गया। इस सभामें भला मेरा क्या पता चलेगा, इस विचारसे मैं बेचैन हुआ । सभापतिका भाषण एक खासी पुस्तक थी। उसका पूरा पढ़ा जाना मुश्किल था। कोई-कोई अंश ही पढ़े गये । फिर विषय-निर्वाचिनी समितिके सदस्य चुने गये । गोखले मुझे उसमें ले गये थे। सर फिरोजशाहने मेरा प्रस्ताव लेना स्वीकार तो कर ही लिया था। में यह सोचता हुआ समितिमें बैठा था कि उस प्रस्तावको समितिमें कौन पेश करेगा, कब करेगा, आदि। हर प्रस्तावपर लंबे-लंबे भाषण होते थे और सब-केसब अंग्रेजीमें। प्रत्येक प्रस्तावके समर्थक कोई-न-कोई प्रसिद्ध पुरुष थे। इस नक्कारखाने में मुझ तूतीकी आवाज कौन सुनेगा ? ज्यों-ज्यों रात जाती थी, त्यों-त्यों मेरा दिल धड़कता था। मुझे याद आता है कि अंतमें रह जानेवाले प्रस्ताव आजकलके वायुयानकी गतिसे चलते थे । सब घर भागनेकी तैयारीमें थे। रातके ११ बजे गये । मेरी बोलनेकी हिम्मत न होती थी। पर मैं गोखलेसे मिल लिया था और उन्होंने मेरा प्रस्ताव देख लिया था । ___ उनकी कुरसीके पास जाकर मैंने धीरेसे कहा--
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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