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प्रयत्न हिंदुस्तानमें किया; परंतु वर्णमालासे आगे न बढ़ सका ।
इस तरह तामिल-तेलगू न पढ़ पाया और अब शायद ही पढ़ पाऊं। इसलिए मैं यह आशा रख रहा हूं कि ये द्राविड़ भाषा-भाषी हिंदुस्तानी सीख लेंगे। दक्षिण अफ्रीकाके द्राविड़--- 'मद्रासी' तो अवश्य थोड़ी-बहुत हिंदी बोलते हैं, मुश्किल है अंग्रेजी पढ़े-लिखोंकी। ऐसा मालूम होता है, मानो अंग्रेजीका ज्ञान हमें अपनी भाषायें सीखनेमें बाधक हो रहा है ।
पर यह तो विषयांतर हो गया। हमें अपनी यात्रा पूरी करनी चाहिए। अभी पोंगोलाके कप्तानका परिचय करना बाकी है । अस्तु । हम दोनों मित्र हो गये थे। यह कप्तान प्लीमथ अदरके संप्रदायका था। इसलिए जहाज-विद्याकी अपेक्षा आध्यात्मिक विद्याकी ही बातें हम दोनोंमें अधिक हुई। उसने नीति और धर्म-श्रद्धामें फर्क बताया। उसकी दृष्टि से बाइबिलकी शिक्षा लड़कोंका खेल था । उसकी खूबी उसकी सरलता है । बालक, स्त्री-पुरुष, सब ईसाको और उसके बलिदानको मान लें कि बस, उनके पाप धुल जावेंगे। इस प्लीमथ बदर ने मेरे प्रिटोरियाके 'ब्रदर'की पहचान ताजा कर दी। जिस धर्ममें नीति की चौकीदारी करनी पड़ती हो वह उसे नीरस मालूम हुआ । इस मित्रता और आध्यात्मिक चर्चाकी तहमें था मेरा ‘अन्नाहार'। मैं मांस क्यों नहीं खाता ? गो-मांसमें क्या बुराई है ? वनस्पतिकी तरह क्या पशु-पक्षियोंको भी ईश्वरने मनुष्यके आनंद तथा आहारके लिए नहीं बनाया है ? ऐसी प्रश्नमाला आध्यात्मिक वार्तालाप उत्पन्न किये बिना नहीं रह सकती थी।
पर हम दोनों एक-दूसरेको न समझा सके। मैं अपने इस विचारपर दृढ़ हुआ कि धर्म और नीति एक ही वस्तुके वाचक हैं । इधर कप्तानको भी अपनी धारणाकी सत्यतापर संदेह न था ।
चौबीस दिनके अंतमें यह आनंददायक यात्रा पूरी हुई, और मैं हुगलीका सौंदर्य निहारता हुआ कलकत्ता उतरा। उसी दिन मैंने बंबई जानेके लिए टिकट कटाया।