________________
आत्म-कथा : भाग ३
किसीपर मुकदमा चलाना नहीं चाहता। जब असली और सच्ची बात लोगोंपर प्रकट हो जायगी और लोग जान जायंगे तब अपने-आप पछतायंगे ।”
___ "तो आप लोग मुझे यह बात लिखकर दे देंगे ? मुझे मि० चेम्बरलेनको इस आशयका तार देना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि आप जल्दीमें कोई बात लिख दें। मि० लाटनसे तथा अपने दूसरे मित्रोंसे सलाह करके जो उचित मालूम हो, वही करें। हां, यह बात मैं जानता हूं कि यदि आप हमलाइयोंपर मामला न चलावेंगे तो सब बातोंको ठंडा करनेमें मुझे बहुत मदद मिलेगी और आपकी . प्रतिष्ठा तो बहुत ही बढ़ जायगी।"
मैंने उत्तर दिया--" इस संबंधमें मेरे विचार निश्चित हो चुके हैं । यह तय है कि मैं किसीपर मुकदमा चलाना नहीं चाहता, इसलिए मैं यहीं-कायहीं आपको लिखे देता हूं।"
यह कहकर मैंने वह आवश्यक पत्र लिख दिया ।
शांति
हमलेके दो-एक दिन बाद जब मैं मि० ऐस्कंबसे मिला तब मैं पुलिसथाने में ही था। मेरे साथ मेरी रक्षाके लिए एक-दो सिपाही रहते थे। पर वास्तवमें देखा जाय तो जब मैं मि० ऐस्कंबके पास ले जाया गया था तब इस तरह रक्षा करनेकी जरूरत ही नहीं रह गई थी।
जिस दिन मैं जहाजसे उतरा उसी दिन, अर्थात् पीला झंडा उतरते ही, तुरंत 'नेटाल एडवरटाइजर'का प्रतिनिधि मुझसे आकर मिला था। उसने कितनी ही बातें पूछी थीं और उसके प्रश्नोंके उत्तरमें मैंने एक-एक बातका पूरा-पूरा जवाब दिया था। सर फिरोजशाहकी नेक सलाहके अनुसार उस समय मैंने भारतवर्ष में एक भी भाषण अलिखित नहीं दिया था। अपने इन तमाम लेखों और भाषणोंका संग्रह मेरे पास था ही। वे सब मैंने उसे दे दिये, और यह साबित कर दिया कि भारतमें मैंने ऐसी एक भी बात नहीं कही थी, जो उससे तेज