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आत्म-कथा : भाग ३
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raariसकी बैठक में भी मिसेज ग्लैडस्टन अपने पतिको चाय बनाकर पिलाती थीं । यह बात उस नियम-निष्ठ दंपती के जीवनका एक नियम ही बन गया था। मैंने यह प्रसंग कविजीको पढ़ सुनाया और उसके सिलसिले में दंपती - प्रेमकी स्तुति की । रायचंदभाई बोले -- " इसमें आपको कौनसी बात महत्त्वकी मालूम होती है -- मिसेज ग्लैडस्टनका पत्नीपन या सेवा-भाव ? यदि वह ग्लैडस्टनकी बहन होतीं तो ? अथवा उनकी वफादार नौकर होतीं और फिर उसी प्रेमसे चाय पिलाती तो ? ऐसी बहनों, ऐसी नौकरानियोंके उदाहरण क्या आज हमें. न मिलेंगे ? और नारी जातिके बदले ऐसा प्रेम यदि नर जातिमें देखा होता तो क्या आपको सानंदाश्चर्य न होता ? इस बातपर विचार कीजिएगा । " रायचंदभाई स्वयं विवाहित थे उस समय तो उनकी यह बात मुझे कठोर मालूम हुई -- ऐसा स्मरण होता है; परंतु इन वचनोंने मुझे लोह -चुंबककी तरह जकड़ लिया | पुरुष नौकरकी ऐसी स्वामि-भक्तिकी कीमत पत्नीकी स्वामी - निष्ठाकी कीमत से हजार गुना बढ़कर है। पति-पत्नी में एकताका अतएव प्रेमका होना कोई आश्चर्य की बात नहीं; पर स्वामी और सेवकमें ऐसा प्रेम पैदा करना पड़ता है । अतएव दिन-दिन कविजीके वचनका बल मेरी नजरों में बढ़ने लगा | में यह विचार उठने लगा कि मुझे अपनी पत्नी के साथ कैसा संबंध रखना चाहिए ? पत्नीको विषय-भोगका वाहन बनाना पत्नीके प्रति बफादारी कैसे हो सकती है ? जबतक मैं विषय-वासना के अधीन रहूंगा तबतक मेरी वफादारीकी कीमत मामूली मानी जायगी। मुझे यहां यह बात कह देनी चाहिए कि हमारे पारस्परिक संबंध में कभी पत्नीकी तरफसे पहल नहीं हुई। इस दृष्टिसे मैं जिस दिन से चाहूं ब्रह्मचर्य का पालन मेरे लिए सलभ था; पर मेरी शक्ति या ग्रासक्ति ही मुझे रोक रही थी ।
जागरूक होनेके बाद भी दो बार तो मैं असफल ही रहा । प्रयत्न करता, पर गिरता; क्योंकि उसमें मुख्य हेतु उच्च न था । सिर्फ संतानोत्पत्तिको रोकना ही प्रधान लक्ष्य था । संतति-निग्रहके बाह्य उपकरणोंके विषय में विलायत में मैंने थोड़ा-बहुत साहित्य पढ़ लिया था। डा० एलिसनके इन उपायोंका उल्लेख अन्नाहारसंबंधी प्रकरण में कर चुका हूं । उसका कुछ क्षणिक असर मुझपर हुआ भी था;
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