________________
अध्याय ७ : ब्रह्मचर्य - - १
२०५
पिताकी शारीरिक एवं मानसिक स्थितिका प्रभाव बच्चेपर अवश्य पड़ता है । माता गर्भकालीन प्रकृति, माताके प्राहार-विहारके अच्छे-बुरे फलको विरासत में पाकर बच्चा जन्म पाता है । जन्मके बाद वह माता-पिताका अनुकरण करने लगता है । वह खुद तो असहाय होता है, इसलिए उसके विकासका दारोमदार माता- पितापर ही रहता है ।
जो समझदार दंपती इतना विचार करेंगे वे तो कभी दंपती संगको विषय. वासनाकी पूर्तिका साधन न बनावेंगे । वे तो तभी संग करेंगे, जब उन्हें संततिकी इच्छा होगी । रति-सुखका स्वतंत्र अस्तित्व है, यह मानना मुझे तो घोर अज्ञान ही दिखाई देता है । जनन क्रियापर संसार के अस्तित्वका अवलंबन है । संसार ईश्वरकी लीला-भूमि है, उसकी महिमाका प्रतिबिंव है । जो शख्स यह मानता है। कि उसकी सुव्यवस्थित बुद्धिके लिए ही रति क्रिया निर्माण हुई है, वह विषय-वासनाको भगीरथ प्रयत्नके द्वारा भी रोकेगा । और रति-भोगके फलस्वरूप जो संतति उत्पन्न होगी उसकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रक्षा करनेके लिए आवश्यक ज्ञान प्राप्त करके अपनी प्रजाको उससे लाभान्वित करेगा ।
ब्रह्मचर्य - १
ब्रह्मचर्य के संबंध में विचार करनेका समय आया है। एक पत्नीव्रत तो विवाह के समय से ही मेरे हृदयमें स्थान कर लिया था । पत्नी के प्रति मेरी वफ़ादारी मेरे सत्यव्रत का एक अंग था, परंतु स्वपत्नी के साथ भी ब्रह्मचर्यका पालन करनेकी आवश्यकता मुझे दक्षिण अफ्रीकामें ही स्पष्टरूपसे दिखाई दी । fre प्रसंग अथवा किस पुस्तकके प्रभाव से यह विचार मेरे मनमें पैदा हुआ, यह इस समय ठीक याद नहीं पड़ता; पर इतना स्मरण होता है कि इसमें रायचंद - भाईका प्रभाव प्रधानरूपसे काम कर रहा था ।
उनके साथ हुआ एक संवाद मुझे याद है । एक बार मैं मि० ग्लैडस्टनके प्रति मिसेज ग्लैडस्टनके प्रेमकी स्तुति कर रहा था। मैंने पढ़ा था कि हाउस