________________
अध्याय ३ : कसौटी
१६५
11
'लो, तुम्हारा शिकार तोइस दुकान से होकर यह सुनकर भीड़ में से कुछ लोग बिगड़े, कुछ
गया तब उन्होंने भीड़से कहा-सही-सलामत बाहर सटक गया । हंसे और बहुतेरोंने तो उनकी बात ही न मानी । " तो तुममें से कोई जाकर अंदर देख ले | अगर गांधी यहां मिल जाय तो उसे मैं तुम्हारे हवाले कर दूंगा, न मिले तो तुमको अपने-अपने घर चले जाना चाहिए। मुझे इतना तो विश्वास है कि तुम पारसी रुस्तमजीके मकानको न . जलाओगे और गांधी के बाल-बच्चोंको नुकसान न पहुंचाओगे ।” सुपरिन्टेंडेंटने
कहा ।
भीने प्रतिनिधि चुने। प्रतिनिधियोंने भीड़को निराशा जनक समाचार सुनाये । सब सुपरिन्टेंडेंट अलेक्जेंडरकी समय-सूचकता और चतुराई की स्तुति करते हुए, और कुछ लोग मन-ही-मन कुढ़ते हुए, घर चले गये ।
66
स्वर्गीय मि० चेम्बरलेनने तार दिया कि गांधीपर हमला करनेवालोंपर मुकदमा चलाया जाय और ऐसा किया जाय कि गांधीको इन्साफ मिले । मि० ऐस्कंबने मुझे बुलाया। मुझे जो चोटें पहुंची थीं, उसके लिए दुःख प्रदर्शित किया और कहाआप यह तो अवश्य मानेंगे कि आपको जरा भी कष्ट पहुंचनेसे मुझे खुशी नहीं हो सकती । मि० लाटनकी सलाह मानकर आपने जो उतर जाने का साहस किया, उसका आपको हक था; पर यदि मेरे संदेशके अनुसार आपने किया होता तो यह दुःखद घटना न हुई होती । अब यदि आप आक्रमणकारियोंको पहचान सकें तो मैं उन्हें गिरफ्तार करके मुकदमा चलानेके लिए तैयार हूं । मि० चेम्बरलेन भी ऐसा ही चाहते हैं ।
"1
मैंने उत्तर दिया-- "मैं किसीपर मुकदमा चलाना नहीं चाहता । हमलाइयोंमेंसे एक-दोको मैं पहचान भी लूं तो उन्हें सजा करानेसे मुझे क्या लाभ ? फिर मैं तो उन्हें दोषी भी नहीं मानता हूं; क्योंकि उन बेचारोंको तो यह कहा गया कि हिंदुस्तान में मैंने नेटालके गोरोंकी भरपेट और बढ़ा-चढ़ाकर निंदा की है । इस बात पर यदि वे विश्वास कर लें और बिगड़ पड़ें तो इसमें प्राश्चर्यकी कौन बात है ? कुसूर तो ऊपरके लोगोंका, और मुझे कहने दें तो श्रापका, माना जा सकता है । आप लोगोंको ठीक सलाह दे सकते थे; पर आपने रॉयटर के तारपर विश्वास किया और कल्पना कर ली कि मैंने प्रत्युक्तिसे काम लिया होगा । मैं