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आत्म-कथा : भाग ३
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कसौटी
जहाज किनारे लगा | मुसाफिर उतरे; परंतु मेरे लिए मि० एस्कंबने कप्तान से कहला दिया था कि गांधीको तथा उनके बाल-बच्चोंको शामको उतारिएगा । गोरे उनके खिलाफ बहुत उभरे हुए हैं, और उनकी जान खतरे में है । . सुपरिटेंडेंट टैट उन्हें शामको लिवा ले जायंगे ।
कप्तानने मुझे इस संदेशका समाचार सुनाया । मैंने उनके अनुसार करना स्वीकार किया; परंतु इस संदेशको मिले अभी आधा घंटा भी न हुआ होगा कि मि० लाटन आये और कप्तानसे मिलकर कहा--" यदि मि० गांधी मेरे साथ आना चाहें तो मैं उन्हें अपनी जिम्मेदारीपर ले जाना चाहता हूं । जहाजके एजेंट के वकील की हैसियतसे मैं आपसे कहता हूं कि मि० गांधीके संबंध में जो संदेश पको मिला है उससे आप अपनेको बरी समझें । " इस तरह कप्तानसे बातचीत करके वह मेरे पास आये और कुछ इस प्रकार कहा-- यदि आपको जिंदगीका डन हो तो मैं चाहता हूं कि श्रीमती गांधी और बच्चे गाड़ी में रुस्तमजी सेठके यहां चले जायें और मैं और श्राप ग्राम- रास्ते होकर पैदल चलें । रातको अंधेरा पड़ जानेपर चुपके-चुपके शहर में जाना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता । मैं समझता हूं कि आपका बालक बांका नहीं हो सकता है। अब तो चारों ओर शांति है । गोरे सब इधर-उधर बिखर गये हैं । और जो भी हो, मेरा तो यही मत हैं कि आपका इस तरह छिपकर जाना उचित नहीं ।
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मैं इससे सहमत हुआ । धर्म-पत्नी और बच्चे रुस्तमजी सेठके यहां गाड़ी में गये और सही-सलामत जा पहुंचे। मैं कप्तानसे विदा मांगकर मि० लाटनके साथ जहाजसे उतरा । रुस्तमजी सेठका घर लगभग दो मील था । जैसे ही हम जहाज से उतरे, कुछ छोकरोंने मुझे पहचान लिया और वे ' गांधी-गांधी' चिल्लाने लगे । तत्कालही दो-चार आदमी इकट्ठे हो गये और मेरा नाम लेकर जोर से चिल्लाने लगे । मि० लाटनने देखा कि भीड़ बढ़ जायगी, उन्होंने रिक्शा मंगाई । मुझे रिक्शामें बैठना कभी भी अच्छा न मालूम होता था ।