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आत्म-कथा : भाग २
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बंबई में सभा
बहनोईके देहांतके दूसरे ही दिन मुझे सभाके लिए बंबई जाना था मुझे इतना समय न मिला था कि अपने भाषणकी तैयारी कर रखता । जागरण करते-करते थक रहा था। आवाज भी भारी हो रही थी । यह विचार करता या कि ईश्वर किसी तरह निबाह लेगा, मैं बंबई गया। भाषण लिखकर लेजाने का तो मुझे स्वप्न में भी खयाल न हुआ था ।
सभाकी तिथिके एक दिन पहले शामको पांच बजे आज्ञानुसार मैं सर फिरोजशाह के दफ्तर में हाजिर हुआ ।
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'गांधी, तुम्हारा भाषण तैयार है न ? ” उन्होंने पूछा ।
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'नहीं तो, मैंने जबानी ही भाषण करनेका इरादा कर रक्खा है । मैंने डरते-डरते उत्तर दिया ।
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'बंबई में ऐसा न चलेगा। यहांका रिपोटिंग खराब है, और यदि हम चाहते हों कि इस सभासे लाभ हो तो तुम्हारा भाषण लिखित ही होना चाहिए और रातों-रात छपा लेना चाहिए । रातहीको भाषण लिख सकोगे न ? "
मैं पसोपेश में पड़ा; परंतु मैंने लिखनेकी कोशिश करना स्वीकार किया ।
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'तो. मुंशी तुमसे भाषण लेने कब ग्रावें ? " बंबई सिंह बोले । [6 ग्यारह बजे । " मैंने उत्तर दिया ।
सर फिरोजशाहने मुंशीको हुक्म दिया कि उतने बजे जाकर मुझसे भाषण ले प्रावे और रातों-रात उसे छपा लें। इसके बाद मुझे विदा किया ।
दूसरे दिन सभामें गया । मैंने देखा कि लिखित भाषण पढ़ने की सलाह rait बुद्धिमत्तापूर्ण थी। फामजी कावसजी इंस्टीट्यूटके हालमें सभा थी । मैंने सुन रक्खा था कि सर फिरोजशाहके भाषण में सभा भवनमें खड़े रहनेको जगह न मिलती थी । इसमें विद्यार्थी लोग खूब दिलचस्पी लेते थे ।
• ऐसी सभाका मुझे यह पहला अनुभव था । मुझे विश्वास हो गया कि मेरी आवाज लोगोंतक नहीं पहुंच सकती । कांपते कांपते मैंने अपना भाषण शुरू