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अध्याय २१ : तीन पौंडका कर
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तरही साग तरकारियां बोई | हिंदुस्तानकी कितनी ही मीठी तरकारियां बोई | जो साग तरकारी वहां पहलेसे मिलती थीं उन्हें सस्ता कर दिया । हिंदुस्तान ग्राम लाकर लगाया; पर इसके साथ ही वे व्यापार भी करने लगे । घर बनानेके लिए जमीनें खरीदीं और मजूरसे अच्छे जमींदार और मालिक बनने लगे । मजूरकी दशासे मालिककी दशाको पहुंचनेवाले लोगोंके पीछे स्वतंत्र व्यापारी वहां आये । स्वर्गीय सेठ अबुबकर आदम सबसे पहले व्यापारी थे, जो वहां गये । उन्होंने अपना कारबार खूब जमाया ।
इससे गोरे व्यापारी चौंके। जब उन्होंने भारतीय कुलियोंको बुलाया और उनका स्वागत किया तब उन्हें उनकी व्यापार क्षमताका अंदाज न हुआ था । उनके किसान बनकर आजादी के साथ रहने में तो उस समयतक उन्हें आपत्ति न थी, परंतु व्यापारमें उनकी प्रतिस्पर्धा उन्हें नागवार हो गई ।
यह है हिंदुस्तानियोंके खिलाफ आवाज उठानेका मूल कारण ।
अब इसमें और बात भी शामिल हो गई। हमारी भिन्न और विशिष्ट रहन-सहन, हमारी सादगी, हमें थोड़े मुनाफेसे होनेवाला संतोष, आरोग्यके नियमोंके विषयमें हमारी लापरवाही, घर-प्रांगनको साफ रखने का आलस्य, उसे साफसुथरा रखने में कंजूसी, हमारे जुदे जुदे धर्म -- ये सब बातें इस विरोधको बढ़ानेवाली थीं ।
यह विरोध एक तो उस मताधिकारको छीन लेनेके रूपमें और दूसरा गिरमिटियोंपर कर बैठाने के रूपमें सामने आया । कानूनके अलावा भी तरहतर खुरपट्टी चल रही थी सो अलग ।
पहली तजवीज यह पेश हुई थी कि पांच साल पूरे होनेपर गिरमिटिया जबरदस्ती वापस लौटा दिया जाय। वह इस तरह कि उसकी गिरमिट हिंदुस्तान में जाकर पूरी हो; पर इस तजवीज को भारत सरकार मन्जूर न कर सकती थी । तब ऐसी तजवीज हुई कि --
१ - मजदूरीका इकरार पूरा होनेपर गिरमिटिया वापस हिंदुस्तान
चला जाय । अथवा-
२- दो-दो वर्षकी गिरमिट नये सिरेसे कराता रहे और ऐसी हर गिरमिटके समय उसके वेतनमें कुछ वृद्धि होती रहे । -