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17 : भाँग रे
यह शिक्षा मेरे हृदयमें इतने जोरके साथ अंकित हो गई कि अपने बीस सालके वकील-जीवनमें अधिक समय मेरा सैकड़ों फरीकैनमें समझौता करानेमें बीता । इसमें मैंने वाया कुछ नहीं । धन खोया हो, यह भी गंनहीं कह सकते; और आत्माको तो किसी तरह नहीं खोया ।
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धार्मिक मंथन
अब फिर ईसाई - मित्रोंके संपर्कपर विचार करनेका समय आया है । मेरे भविष्य के संबंध में मि० बेकरकी चिंता दिन-दिन बढ़ती जा रही थी। वह मुझे वेलिंग्टन कन्वेंशन में ले गये । प्रोटेस्टेंट ईसाइयोंमें, कुछ-कुछ वर्षों बाद, धर्म जागृति अथात् आत्म शुद्धिके लिए विशेष प्रयत्न किये जाते हैं । इसे धर्मकी पुनःप्रतिष्ठा अथवा धर्मका पुनरुद्धार कहा करते हैं। ऐसा एक सम्मेलन वेलिंग्टनमें था । उसके सभापति वहांके प्रख्यात धर्मनिष्ठ पादरी रेवरंड एंड्र मरे थे । मि० करको ऐसी आशा थी कि इस सम्मेलनमें होनेवाली जागृति, वहां आनेवाले लोगोंका धार्मिक उत्साह, उनका शुद्धभाव, मुझपर ऐसा गहरा असर डालेगा कि मैं ईसाई हुए बिना न रह सकूंगा ।
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परंतु मि० बेकरका अंतिम आधार था प्रार्थना - बल । प्रार्थनापर उनकी भारी श्रद्धा थी । उनका विश्वास था कि अंतःकारण - पूर्वक की गई प्रार्थनाको ईश्वर अवश्य सुनता है । वह कहते, 'प्रार्थनाके ही बलपर मुलर ( एक विख्यात भावुक ईसाई ) जैसे लोगोंका काम चलता है । ' प्रार्थनाकी यह महिमा मैंने तटस्थ भावसे सुनी । मैंने उनसे कहा कि यदि मेरी अंतरात्मा पुकार उठे कि मुझे ईसाई हो जाना चाहिए तो दुनियाकी कोई शक्ति मुझे रोक नहीं सकती। अंतरात्माकी पुकार के अनुसार चलने की आदत मैं कितने ही वर्षोंसे डाल चुका था । अंतरात्माके अधीन होते हुए मुझे श्रानंद श्राता । उसके विपरीत आचरण करना मुझे कठिन और दुखदाई मालूम होता था ।
हम वेलिंग्टन गये । मुझ 'श्याम साथी' को साथ रखना मि० बेकरके लिए भारी पड़ा । कई बार उन्हें मेरे कारण प्रसुविधा भोगनी पड़ती। रास्ते में