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अध्याय १८ : वर्ण-द्वेष
१४६ वकील-सभाने कमर कसी थी; किन्तु प्रदालतने इस अवसर पर अपने चिह्नकी लाज रख ली ।
मुझे वकालतकी सनद लेनी थी । मेरे पास बंबई हाईकोर्टका तो प्रमाणपत्र था; पर विलायतका प्रमाण-पत्र बंबई - श्रदालत के दफ्तर में था; वकालतकी मंजूरीकी दरख्वास्त के साथ नेकचलनीके दो प्रमाणपत्रोंकी आवश्यकता समझी जाती थी । मैंने सोचा कि यदि ये प्रमाणपत्र गोरे लोगोंके हों तो ठीक होगा । इसलिए अब्दुल्ला सेठकी मार्फत मेरे संपर्क में आये दो प्रसिद्ध गोरे व्यापारियों के प्रमाण-पत्र लिये । दरख्वास्त किसी वकीलकी मार्फत दी जानी चाहिए । मामूली कायदा यह था कि ऐसी दरख्वास्त एटर्नी जनरल बिना फीसके पेश करता है । मि० एस्कंत्र एटर्नी जनरल थे। हम जानते ही हैं कि अब्दुल्ला सेठके वह वकील थे । अतएव मैं उनसे मिला और उन्होंने खुशीसे मेरी दरख्वास्त पेश करना मंजूर कर लिया ।
इतने चानक वकील - सभाकी तरफसे मुझे नोटिस मिला। नोटिस में मेरे वकालत करनेके खिलाफ विरोधकी आवाज उठाई गई थी । इसमें एक कारण यह बताया गया था कि मैंने वकालतकी दरख्वास्त के साथ प्रसल प्रमाण-पत्र नहीं पेश किया था; परंतु विरोधकी असली बात यह थी कि जिस समय अदालत में वकीलोंको दाखिल करनेके संबंध में नियम बने, उस समय किसीने भी यह खयाल न किया होगा कि वकालतके लिए कोई काला या पीला आदमी ग्राकर दरख्वास्त देगा | नेटाल गोरोंके साहसका फल है और इसलिए यहां गोरोंकी प्रधानता रहनी चाहिए । उनको भय हुआ कि यदि काले वकील भी अदालत में आने लगेंगे तो धीरे-धीरे गोरोंकी प्रधानता चली जायगी और उनकी रक्षाकी दीवारें टूट जायंगी । इस विरोधके समर्थनके लिए वकील सभाने एक प्रख्यात वकीलको अपनी तरफसे खड़ा किया था । इस वकीलका भी संबंध दादा अब्दुल्लासे था । उनकी मार्फत उन्होंने मुझे बुलाया। उन्होंने शुद्ध भावनासे मुझसे बातचीत की । मेरा इतिहास पूछा । मैंने सब कह सुनाया । तब वह बोले-
" मुझे आपके खिलाफ कुछ नहीं कहना । मुझे यह भय था कि आप कोई यहीं पैदा हुए धूर्त आदमी होंगे। फिर आपके पास असली प्रमाण-पत्र नहीं हैं, इससे मेरे को और पुष्टि मिल गई। और ऐसे लोग भी होते हैं, जो दूसरोंके