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अध्यायं १४ : मुकदमेकी तैयारी पक्षवालोंकी इच्छा जरूर थी कि मामला जल्दी तय हो जाय तो अच्छा ।
मैंने तैयब सेठसे अनुरोध किया और आपसमें निपटारा कर लेनेकी सलाह दी। मैंने कहा कि आप अपने वकीलसे मिलिए। दोनोंके विश्वासपात्र पंचको यदि ये नियुक्त करदें तो मामला जल्दी तय हो सकता है। वकीलोंके खर्चका बोझा इतना चढ़ रहा था कि उसमें बड़े-बड़े व्यापारी भी खप जायं। दोनों इतनी चितासे मुकदमा लड़ रहे थे कि कोई भी बेफिक्रीसे दूसरा कोई काम न कर पाते थे; और दोनोंमें मनमुटाव जो बढ़ता जाता था सो अलग ही। यह देखकर मेरे मनमें वकालतपर घृणा उत्पन्न हुई। वकीलका तो यह काम ही ठहरा कि एकदूसरेको जितानेकी कानूनी गुंजाइशें ही खोज-खोजकर निकालते रहें । जीतनेबालेको सारा खर्च कभी नहीं मिलता, यह बात मैंने इस मामलेमें पहलेपहल जानी। वकील मवक्किलसे एक फीस लेता है; और मवक्किलको प्रतिवादीसे दूसरी रकम मिलती है। दोनों रकमें जुदा-जुदा होती हैं। मुझे यह सब बड़ा नागवारं गुजरा। मेरी अंतरात्माने कहा कि इस समय मेरा धर्म है दोनोंमें मित्रता करा देना, दोनों रिश्तेदारोंमें मिलाप करा देना। मैंने समझौतेके लिए जी तोड़कर मिहनत की। तैयब सेठने बात मान ली। अंतको पंच मुकर्रर हुए और मुकदमा चला। उसमें दादा अब्दुल्लाकी जीत हुई ।
पर मुझे इतनेसे संतोष न हुआ। यदि पंचके फैसलेका अमल एकबारगी हो तो तैयब हाजी खान मुहम्मद इतना रुपया एकाएक न दे सकते थे। दक्षिण अफ्रिका-स्थित पोरबंदरके मेमन व्यापारियोमें एक आपसका अलिखित कायदा था कि खुद चाहे मर जाये, पर दिवाला न निकालें। तैयव सेठ ३७,००० पौंड
और खर्च एकमुश्त नहीं दे सकते थे। फिर वह एक पाई कम न देना चाहते थे । दिवाला भी नहीं निकालना था। ऐसी दशामें एक ही रास्ता था--दादा अब्दुल्ला उन्हें अदायगीके लिए काफी मियाद दें। दादा अब्दुल्लाने उदारतासे काम लिया और लंबी मियाद दे दी। पंच मुकर्रर करने में जितना श्रम मुझे हुआ उससे कहीं अधिक लंबी किस्त करानेमें हुआ। अंतको दोनों पक्ष खुश रहे। दोनोंकी प्रतिष्ठा बढ़ी। मेरे संतोषकी तो सीमा न रही। मैंने सच्ची वकालत करना सीखा; मनुष्यके गुण---उज्ज्वल पक्षको खोजना सीखा; मनुष्यके हृदयमें प्रवेश करना सीखा। मैंने देखा कि वकीलका कर्तव्य है, फरीकनमें पड़ी खाईको पाट देना।