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१४.
লজ্জা : মাল ও
मृत्युमें कोई गुह्ये चमत्कार-प्रभाव था, इस बातको मेरा हृदय न मान सकता था। ईसाइयोंके पवित्र जीवनमेंसे मुझे कोई ऐसी बात न मिली जो दूसरे धर्मवालोंके जीवनमें न मिलती थी। उनकी तरह दूसरे धर्मवालोंके जीवन में भी परिवर्तन होता हुआ मैंने देखा था। सिद्धांतकी दृष्टिसे ईसाई-सिद्धांतोंमें मुझे अलौकिकता न दिखाई दी। त्यागकी दृष्टिले हिंदू-धर्मवालोंका त्याग मुझे बढ़कर मालुम हुआ। अतः ईसाई-धर्मको मैं संपूर्ण अथवा सर्वोपरि धर्म न मान सका । - अपना यह हृदय-मंथन मैंने, समय पाकर, ईसाई मित्रोंके सामने रक्खा । उसका जवाब वे संतोषजनक न दे सके ।
परंतु एक ओर जहां मैं ईसाई-धर्मको ग्रहण न कर सका वहां दूसरी ओर हिंदू-धर्मकी संपूर्णता अथवा सर्वोपरिताका भी निश्चय मैं इस समय तक न कर सका। हिंदू-धर्मकी त्रुटियां मेरी अांखोंके सामने घूमा करतीं। अस्पृश्यता यदि हिंदू-धर्मका अंग हो तो वह मुझे सड़ा हुआ अथवा बढ़ा हुआ मालूम हुआ। अनेक संप्रदायों और जात-पांतका अस्तित्व मेरी समझमें न आया। वेद ही ईश्वर प्रणीत है, इसका क्या अर्थ ? वेद यदि ईश्वर-प्रणीत है, तो फिर कुरान और बाइबिल क्यों नहीं ?
जिस प्रकार ईसाई मित्र मुझपर असर डालनेका उद्योग कर रहे थे, उसी प्रकार मुसलमान मित्र भी कोशिश कर रहे थे । अब्दुल्ला सेठ मुझे इस्लामका अध्ययन करनेके लिए ललचा रहे थे। उसकी खूबियोंकी चर्चा तो वह हमेशा करते रहते ।
, मैंने अपनी दिक्कतें रायचंदभाईको लिखीं। हिंदुस्तान में दूसरे धर्मशास्त्रियोंसे भी पत्र-व्यवहार किया। उनके उत्तर भी आये; परंतु रायचंदभाईके पत्रने मुझे कुछ शांति दी। उन्होंने लिखा कि धीरज रक्खो, और हिंदू-धर्मका गहरा अध्ययन करो। उनके एक वाक्यका भावार्थ यह था--- 'हिंदू-धर्ममें जो सूक्ष्म और गूढ़ विचार है, जो आत्माका निरीक्षण है, दया है, वह दूसरे धर्ममें नहीं हैं - निष्पक्ष होकर विचार करते हुए मैं इस परिणामपर पहुंचा हूँ ।'
___ मैने सेल-कृत कुरान खरीदी और पढ़ना शुरू किया। दूसरी इस्लामी पुस्तकें भी मंगाई। विलायतके ईसाई मित्रोंसे लिखा-पढ़ी की। उनमेंसे एकने एडवर्ड मेटलैंडसे जान-पहचान कराई। उनके साथ चिट्ठी-पत्री हुई। उन्होंने