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अध्याय ११ : ईसाइयोंसे परिचय
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वहीं भोजन किया । मकान मालकिन भलीमानुस थी । उसने मेरे लिए अन्नभोजन तैयार किया था । इस कुटुंब के साथ हिलमिल जानेमें मुझे समय न लगा । खा-पीकर में दादा अब्दुल्लाके उन मित्रसे मिलने गया, जिनके नाम उन्होंने पत्र दिया था। उनसे परिचय किया । उनसे हिंदुस्तानियोंके कष्टोंका और हाल मालूम हुआ । उन्होंने मुझे अपने यहां रहनेका आग्रह किया । मैंने उनको धन्यवाद दिया और अपने लिए जो प्रबंध हो गया था उसका हाल सुनाया । उन्होंने जोर देकर मुझसे कहा कि जिस किसी बातकी जरूरत हो, मुझे खबर कीजिएगा।
शाम हुई । खाना खाया और अपने कमरेमें जाकर विचारके भंवरमें जा गिरा। मैंने देखा कि अभी हाल तो मेरे लिए कोई काम नहीं है । अब्दुल्ला सेठको खबर की । मि० बेकर जो मित्रता बढ़ा रहे हैं इसका क्या अर्थ है ? इनके धर्म-बंधुके द्वारा मुझे कितना ज्ञान प्राप्त होगा ? ईसाई धर्मका अध्ययन मैं किस हदतक करूं ? हिंदू धर्मका साहित्य कहांसे प्राप्त करूं ? उसे जाने बिना ईसाई धर्मका स्वरूप मैं कैसे समझ सकूंगा ? मैं एक ही निर्णय कर पाया। जो चीज मेरे सामने आ जाय उसका अध्ययन में निष्पक्ष रहकर करूं और बेकरके समुदायको जिस समय ईश्वर जो बुद्धि दे वह उत्तर दे दिया करूं । जबतक में अपने धर्मका ज्ञान पूरा-पूरा न कर सकूं तबतक मुझे दूसरे धर्मको अंगीकार करनेका विचार न करना चाहिए । यह विचार करते-करते मुझे नींद आ गई ।
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ईसाइयों से परिचय
दूसरे दिन एक बजे मैं मि० बेकरके प्रार्थना समाजमें गया। वहां कुमारी हैरिस, कुमारी गेब, मि० कोट्स आदिसे परिचय हुआ । सबने घुटने टेककर प्रार्थना की। मैंने भी उनका अनुकरण किया । प्रार्थनामें जिसका जो मन चाहता, ईश्वरसे मांगता। दिन शांतिके साथ बीते, ईश्वर हमारे हृदयके द्वार खोलो, इत्यादि प्रार्थना होती । उस दिन मेरे लिए भी प्रार्थना की गई । ' हमारे साथ जो यह नया भाई आया है, उसे तू राह दिखाना । तूने जो शांति हमें प्रदान की है वह इसे भी देना । जिस ईसामसीहने हमें मुक्त किया है, वह इसे भी मुक्त करे ।