________________
६२
आत्म-कथा: भाग १
शब्दका जो अर्थ माना था और जो मैं उस समय समझता था, वही मेरे लिए सच्चा अर्थ था। और जो अर्थ मैंने अपनी विद्वत्ताके मदमें किया अथवा यह मान लिया कि अधिक अनुभवसे सीखा, वह सच्चा न था।
अबतक मेरे प्रयोग आर्थिक और आरोग्यकी दृष्टि से होते थे। विलायतमें उन्हें धार्मिक स्वरूप प्राप्त नहीं हुआ था। धार्मिक दृष्टिसे तो कठोर प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में हुए, जिनका जिक्र आगे आयेगा। पर हां, यह जरूर कह सकते हैं कि उनका बीजारोपण विलायतमें हुआ ।
___ मसल मशहूर है कि 'नया मुसलमान जोरसे बांग देता है ।' अन्नाहार विलायतमें एक नया धर्म ही था, और मेरे लिए तो वह नया था ही। क्योंकि बद्धिसे मांसाहारका हिमायती बननेके बाद ही मैं विलायत गया था। समझबुझकर अन्नाहार तो मैंने विलायतमें ही स्वीकार किया था। इसलिए मेरी हालत 'नये मुसलमान की-सी थी। नवीन धर्मको ग्रहण करनेवालेका उत्साह मुझ में या गया था, अतएव जिस मुहल्ले में मैं रहता था वहां अन्नाहारी-मंडल स्थापित करनेका प्रस्ताब मैंने किया। मुहल्लेका नाम था 'बेज़-वाटर'। उसमें सर. पविन गर्नाल्ड रहते थे। उन्हें उपाध्यक्ष बनानका यत्न किया और वह हो भी गये। डाक्टर गोल्डपी अध्यक्ष बनाये गये, और मंत्री बना मैं। थोड़े समय तो वह संस्था कुछ चली; परंतु कुछ महीनोंके बाद उसका अंत पा गया। क्योंकि अपने दस्तरके मताबिक उस मुहल्ले को कुछ समयके बाद मैंने छोड़ दिया। परंतु इस छोटे और थोड़े समय के अनुभवसे मुझे संस्थाओंकी ग्ननग और संचालनका कुछ अनुभव प्राप्त हुआ।
अप--मेरी ढाल अन्नाहारी-मंडल की कार्य-समिनिमें मैं चुना तो जरूर गया, उसमें हर समय हाजिर भी जरूर होता : परंतु बोलनेको मुंह ही न खुलता था । डाक्टर गोल्डफील्ड कहते---"तुम मेरे साथ तो अच्छी तरह बातें करते हो; परंतु समितिकी बैठकमें कभी मुंह नहीं खोलते। तुम्हें 'नर-मावी ' क्यों न कहना चाहिए ?" मैं इस विनोदका भाव समझा। चिम्नयां तो निरंतर काम करती रहती हैं;