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आत्म-कथा : भाग १
एनाल्डका अनुवाद सबमें श्रेष्ठ मालूम होता है। उन्होंने मूल ग्रंथके भावोंकी अच्छी रक्षा की है और तिस पर भी वह अनुवाद-जैसा नहीं मालूम होता। फिर भी यह नहीं कह सकते कि इस समय मैंने भगवद्गीताका अच्छा अध्ययन कर लिया हो। उसका रोज-मर्रा पाठ तो वर्षों बाद शुरू हुआ।
इन्हीं भाइयोंने मुझे एर्नाल्ड लिखित बुद्ध-चरित पढ़नेकी सिफारिश की। अबतक में तो सिर्फ यही जानता था कि सिर्फ गीताका ही अनुवाद एनाल्डने किया है, परंतु बुद्ध-चरितको मैंने भगवद्गीतासे भी अधिक चावके साथ पढ़ा। पुस्तक जो एक बार हाथमें ली सो खतम करके ही छोड़ सका।
ये भाई मुझे एक बार लेवेट्स्की -लॉजनं भी ले गये। वहां मैडम ब्लेवेट्स्की तथा मिसेज बेसेंटके दर्शन मुझे कराये । मिसेज बेसेंट उन्हीं दिनों थियोसोफिकल सोसायटीमें आई थीं; और इस विषयकी चर्चा अखबारोंमें चल रही थी। मैं उसे चावसे पढ़ता था। इन भाइयोंने मुझे थियोसोफिकल सोसायटीमें आने के लिए कहा। मैंने विनयपूर्वक 'ना' करके कहा---- 'मुझे अभी किसी धर्मका कुछ भी ज्ञान नहीं, इसलिए मेरा दिल नहीं होता कि अभी किसी भी संप्रदायमें मिल जाऊं।' मुझे कुछ ऐसा खयाल पड़ता है कि इन्हीं भाइयोंके कहनेसे मेडम ब्लेवेट्स्की रचित 'की टु थियोसोफी' पुस्तक भी मैंने पढ़ी। उससे हिंदू-धर्म-संबंधी पुस्तकोंके पढ़नेकी इच्छा हुई। पादरी लोगोंके मुंहसे जो यह सुना करता था कि हिंदू-धर्म तो अंध विश्वासोंसे भरा हुआ है, यह खयाल दिलसे निकल गया ।।
. इसी अरसेमें एक अन्नाहारी छात्रालयमें मैचेस्टरके एक भले ईसाईसे मुलाकात हुई। उन्होंने ईसाई-धर्मकी बात मुझसे छेड़ी। मैंने अपना राजकोटका अनुभव उन्हें सुनाया। उन्हें बहुत दुःख हुआ। कहा--' में खुद अन्नाहारी हूं। शराबतक नहीं पीता । बहुतेरे ईसाई मांस खाते हैं, शराब पीते हैं, यह सच है। पर ईसाई-धर्म में दोनोंमेंसे एक चीज भी लाजिमी नहीं। आप बाइबिल पढ़ें तो मालूम होगा।' मैंने उनकी सलाह मानी। उन्होंने एक बाइबिल भी खरीदकर ला दी। मुझे कुछ-कुछ ऐसा याद पड़ता है कि वह सज्जन खुद ही बाइबिल बेचते थे। उन्होंने जो बाइबिल मुझे दी उसमें कई नक्शे और अनुक्रमणिका इत्यादि थी। पढ़ना शुरू तो किया; परंतु 'ओल्ड टेस्टामेंट' तो पढ़ ही न सका । जेनिस--- 'सुटि-उपास्ति'-~वाले प्रकरणके बाद तो गढ़ने-पढ़ने नींद आने लगती । केवल