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अध्याय ८ : प्रिटोरिया जाते हुए
११५ पर मैंने कुछ तो हमें, कुछ मदमें, और कुछ ५ गिलिंग बचानेकी नीयतसे इन्कार कर दिया ।
अब्दुल्ला सेठने मुझे चेताया-- “देखना यह मुल्क और है, हिंदुस्तान नहीं। खुदाकी मेहरबानी है, आप पैसे का ख्याल न करना, अपने आरामका सब इंतजाम कर लेना ।"..
मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि आप मेरी चिता न कीजिए ।
नेटालकी राजधानी मेरित्सबर्ग में ट्रेन कोई ९ बजे पहुंची। यहां सोनेवालोंको बिछौने दिये जाते थे। एक रेलवेके नौकरने आकर पूछा---" आप बिछौना चाहते हैं !"
मैंने कहा--" मेरे पास एक बिछौना है।"
वह चला गया। इस बीच एक यात्री आया। उसने मेरी ओर देखा। मुझे 'काला आदमी' देखकर चकराया। बाहर गया और एक-दो कर्मचारियोंको लेकर आया। किसीने मुझसे कुछ न कहा । अंतको एक अफसर आया। उसने कहा--" चलो, तुमको दूसरे डिब्बे में जाना होगा।"
मैंने कहा--"पर मेरे पास पहले दरजेका टिकट है।"
उसने उत्तर दिया--" परवा नहीं, मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हें आखिरी डिब्बे में बैठना होगा।"
"मैं कहता हूं कि मैं डरबनसे इसी डिब्बेमें बिठाया गया हूं और इसीमें जाना चाहता हूं।"
अफसर बोला- “यह नहीं हो सकता। तुम्हें उतरना होगा, नहीं तो सिपाही आकर उतार. देगा।"
मैंने कहा-- " तो अच्छा, सिपाही आकर भले ही मुझे उतारे, मैं अपनेआप न उतरूंगा।"
सिपाही आया। उसने हाथ पकड़ा और धवका मार कर मुझे नीचे गिरा दिया। मेरा सामान नीचे उतार लिया। मैंने दूसरे डिब्बेमें जाने से इन्कार किया। गाड़ी चल दी। मैं वेटिंग-रूममें जा बैठा। हैंडबेग अपने साथ रवखा। दूसरे सामानको मैंने हाथ न लगाया। रेलवेवालोंने सामान कहीं रखवा दिया।
मौसम जाड़ेका थां। दक्षिण अफरीकामें ऊंची जगहोंपर बड़े जोरका