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परमात्म-पथ का दर्शन
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वोध ही वर्तमानकाल मे तो परमात्मपथ के निर्णय का आधार हो सकता है ।
वर्तमानकाल मे परमात्मपथ निर्णय मे आधारभूत बोध हम बहुत-सी बार यह अनुभव करते हैं कि साधको के बोध मे अनेक प्रकार की न्यूनाधिकर्ता होती है । किसी-किसी साधक का क्षयोपशम इतना प्रबल होता है कि चाहे जैसा नया प्रश्न उसके सामने प्रस्तुत किया जाय, वह अपने विशाल वाचन और व्यापक वोध के आधार पर उसका यथार्थ उत्तर दे सकता है । शास्त्र में ऐसे-ऐसे श्रु तनानियो का उल्लेख है कि वे अपने मतिजान से उसका ठीक उपयोग लगाएँ और उनका वोध स्थिर विशाल और सुदृढ हो तो चाहे जैसे सूक्ष्मभावो के विषय मे केवलज्ञानियो के बराबर यथातथ्य निर्णय दे सकते हैं। इसीलिए श्रीआनन्दघनजी आत्म-प्रत्यक्षज्ञानियो (दिव्यनेत्रो) के अभाव मे पूर्वोक्त प्रवलतम क्षयोपशमभावना से भावित बोध को इस युग मेपरमात्मपथ-निर्णय का आधार मानते हैं।
निश्चयनय की भाषा मे कहे तो अपने मे आत्मप्रत्यक्षज्ञान (दिव्यनेत्र) के अभाव मे अपने उपादान=क्षयोपशमभाव के प्राबल्य से होने वाला (वामित) बोध ही वर्तमानकाल मे परमात्ममार्ग के निर्णय का आधार बन सकता है। ___इस बात को न मान कर यदि यही आग्रह रखा जाय कि जब कभी दिव्यज्ञानी या दिव्यज्ञान का योग मिलेगा, तभी परमात्मपथ का बोध किया जायगा, तो उस साधक को अनेक कठिनाइयो का सामना करना पडेगा, अनेक विघ्न' उसके विकासमार्ग मे रोडा अटकाएंगे, अव तक उसने जो भी प्रगति की है, वह भी ठप्प हो जायगी और आत्मा कर्मों से भारी हो कर जन्ममरण के चक्र में भटकती रहेगी । अन अपने क्षयोपशम के अनुसार जो भी अनुकूल साधन या सयोग प्राप्त हो, उनका अवलम्बन ले कर परमात्मपथ पर प्रगति करते रहना चाहिए । इसी आशय से श्रीआनन्दघनजी ने वर्तमानकाल मे मति-श्रुतज्ञान के उत्कृष्ट क्षयोपशमभाव से भावित बोध से युक्त ज्ञानी या ज्ञान के आधार को योग्य माना है।
परमात्मपयदर्शन के लिये श्रेष्ठ आधार : समय की परपक्वता पूर्वोक्त गाया मे दिव्यज्ञान के अभाव में वर्तमान युग मे उत्कृष्ट क्षयो