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दोषरहित परमात्मा की सेवको के प्रति उपेक्षा
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अथवा कर्मों को बटोर कर संग्रह करने वाली दंताली (करपाली) रूप नोकपायों (आत्मा को थोड़ी मात्रा मे बिगाडने वाली कषायभावना) के क्षय करके आत्मगुगो पर आरोहण कराने वाले क्षाकणीरुपी हाथी पर आपके चढते ही इन सब नोरुपायो ने फुत्ते को चाल पका ली । यानी उस क्षपकश्रेणीरूपी हायो को देख कर भौंकने लगे और जब वह नजदीक आया तो दुम दवा कर भाग गए।
भाष्य
हास्यादि पड्दोषो के निवारण के बाद अप्रमत्त-अवस्था मे प्रभु मे ये ६ दोष थे । परन्तु जब उन्होंने देखा कि इन नोकपायरूपी (हास्यादि ६, और ३ वेद) कुत्तो को ज्यो-ज्यों पुचकारते है, त्यो त्यो नजदीक आते हैं, और जब इ.हे दुत्कारते हैं तो ये भौकने लगते हैं। अत आपने इन ६ को आत्मा के प्रनि गैरवफाद र देख कर इन्हें दूर करने का प्रयत्न किया । जव तक आपको वृत्ति और आत्मस्वभाव मे रमणता का मुझे पता न था वहां तक मे अपने मन में यह समझना था कि हास्यादि नौ नोकषाय मापके सेवक होंगे, मैं भी हास्यादि मे सुख मानता था, लेकिन जब से आपके वास्तविक स्वरूप और सुख को मैंने समझा, मुझे असलियत का पता चल गया कि नौ नोकपायो मे सुख मानता तो पामलपन है, ये तो कपाय के ही छोटे भाई हैं, मोहनीय कर्म के बेटे हैं, इसलिए बडे भयकर हैं, ये सुन्न के ही नही, आत्मगुणो के घातक हैं।
और मैंने देखा कि जब से आपने अपना स्वरूप सभाला, उग्र तप सयम द्वारा आपने क्षपकोणी पर चढ़ना शुरू किया, तब मुझे ऐसा लगा मानो कोई विजयी पुरुष हाथी पर चढा जा रहा है, और उसके पीछे कुत्ते .भौक रहे हैं । सचमुच जव आप क्षपकवेणीरूपी हाथी पर चढ़े तो ये हास्यादि छह कुत्तो की तरह भौकने लगे, परन्तु आपने उनकी ओर देखा तक भी नहीं, आप तो चुपचाप मोक्षपुरी के दरवाजे के सामने पहुंच गए। वेचारे कमजोर हास्यादि नोकपायो की जब दाल नही गली तो चुपचाप दुम दबा कर भाग
गए। किन्तु इन सबका स्वभाव कुत्ते की नाई खिंच आने का (करसाली) " है, कुत्ते को जितमा पुचकारेंगे, उतना नजदीक खिचता चला आएगा, वैसे ही
ये है।