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ध्येय के साथ ध्याता और ध्यान की एकता
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प्रेम करे जगजन सहु रे, निरवाहे ते और ; मन० । प्रीति करी ने छोड़ी दे रे, तेहशुन चाले जोर; मन० ।। ७ ।। जो मनमां एहवु हतुरे, निसपति करत न जाण; मन० । निसपति करी ने छाड़ता रे, माणस हुवे नुकशान; मन० ॥८॥" देतां दान सवत्सरी रे, सह लहे वांछित पोष, मन० । सेवक वाछित नवि लहे रे, ते सेवकनो दोष; म० ॥६॥ सखी कहे-'ए शामलो रे,' हु कहु लक्षण सेत; मन० । इण लक्षण साची सखी रे, आप विचारो हेत; मन० ॥ १० ।।
अर्थ आपने पशुसमूह के प्रति हृदय मे बहुत दीर्घदृष्टि से विचार करके अत्यन्त दया (करुणा) की, परन्तु आपके हृदय मे मनुष्य के (मनुष्यरूप मे मेरे = राजीमती के) प्रति जरा भी दया नहीं है । पता नहीं, यह किस घर (परिवार) का यह आचार (रीति-रिवाज या मर्यादापथ) है ? ॥ ४ ॥
आपने तो प्रेमरूपी कल्पवृक्ष को काट डाला और उसके बदले उदासीनता का प्रतीक योगरूपी धतूरे का पेड पकड़ लिया है; अथवा धतूरे का वृक्षारोपण कर दिया है यह तो बताइए, आपको इस प्रकार के चातुर्य का पाठ पढ़ाने वाला जगत् मे शूर या शूल के समान कौन गुरु मिल गया ॥ ५ ।
स्वामिन् मेरा तो इसमे कुछ भी नहीं विगडेगा ? मेरी इज्जत इसमे कुछ भी नहीं जाएगी, राजकुमार | आर अपने मन मे विचार करिए ! जब आप राजसमा । मे बैठेंगे, और लोग आपके सामने इस तुच्छ व्यवहार की चर्चा करेंगे, तब आपकी इज्जत कितनी बढेगी ? ॥ ६ ॥ मैं तो यह समझी हूँ कि ससार मे प्रम तो समी लोग करते हैं लेकिन प्रेम करके उसे निबाहने वाले विरले (और) ही होते हैं । जो पुरुष किसी के साथ प्रीति करके छोड़ देते हैं, उन पर प्रेमी का क्या जोर चल सकता है ? ॥ ७॥ अगर आपके मन मे ऐसा (प्रेम जोडने के बाद तोडने का) विचार था, तो मैं पहले से ही इसे समझ कर . सगाई-सम्बन्ध या प्रीति सम्बन्ध न करती । जब कोई सगाई (प्रीति) सम्बन्ध जोड़ कर फिर उसे छोड़ देता है, तब सामने वाले (दूसरे पक्ष) की कितनी हानि या हैरानी होती है ? इस पर आप जरा विचार करके तो देखें ।।। ८ ।। जब आप