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अध्यात्म-दशन
सवत्सरी (एक वर्ष तक लगातार एक करोड आठ लाख सोनेयो का, दान देते हैं, तो उससे सभी अपने-अपने भाग्य या इच्छा के अनुसार पोषण प्राप्त करते हैं लेकिन यह सेवक (आपके चरणो की आठ जन्म तक सेवा करने वाली सेविका राजीमती) विवाहदानरूप मे मनोवांछित दान नहीं पा सका, इसमे आपका तो क्या दोष है, सेवक के ही कर्मों का दोष समझना चाहिए । ॥ ॥ आपको देख कर मेरी सखी ने कहा था कि "यह (नेमिकुमार। तो काले रंग के हैं ।' तब मैंने उसे जवाब दिया कि वे (आप) शरीर से भले ही काले हो लक्षणोगुणो से श्वेत गोरे) हैं । परन्तु आपकी अनुदारता और उदासीनता के इन लक्षणों को देखते हुए मेरी सधी ने जो कहा था, वह सच मालूम होता है। अव आप ही इस क्थन के कारण पर विचार करिये कि वास्तव मे आप कैस है ? ॥१॥
भाव्य
राजीमती द्वारा नेमिनाथस्वामी को उपालम्भों का दौर राजीमती नेमिनाथस्वामी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उपालम्भ के स्वर मे कहती है-"स्वामिन्। आप हैं तो बहुत ही दयालु। जब आप बरात ले कर विवाह के लिए पधार रहे थे तो रास्ते मे बरातियो के भोज के लिए बाडे मे अवरुद्ध पशुओ की करुण पुकार गन कर आपका हृदय दयार्द्र हो उठा 1 आपने तुरत सारथी से कह कर उस वाडे के द्वार खुलटा दिये और तमाम पशुओ की मुक्त करवा दिये । यह आपकी पशुजन पर करुणा तो जगत् मे प्रसिद्ध हो गई, लेकिन आप पशुदया से भी बढकर मनुष्यदया को क्यो भूल गए? जब से आप रथ वापिस मोड कर लौट गए, तब से मैं आपके वियोग मे तडप रही है। मेरा अपमान करके और मुझे अधबिच मे धक्का दे कर आपने मेरे प्रति इतनी क्रूरता वरती, क्या मनुष्य को और उसमे भी मेरे जैसी आपको सेविका को मरने देना, यह कहां का न्याय है ? यह आपकी कैसी करुणा है ? अनेक पशुओ पर दया ला कर भी मुझे छोड कर जाने को तैयार हो गए ? मेरी दुदशा का आपने विचार तक नहीं किया ? कुछ समझ मे नही आता, आपकी दया पा यह कैसा ढग है ? इस वक्र क्ति मे राजामती ने तत्त्वज्ञान का एक महासूत्र स्पष्ट कर दिया है कि शास्त्रानुसार पशुपक्षी या एकेन्द्रिय से ले कर पचेन्द्रिय तियंच तक के जीवो की अपेक्षा मनुष्य का महत्व अधिक है । इसलिए इस क्रमानुसार भी मनुष्यो के प्रतिदया पहले करनी चाहिए थी। "आपकी करुणा का आचार पूर्व