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अध्यात्म-दर्शन
सारांश इस स्तुति मे श्रीआनन्दघन जी ने इन दोषो को पुराने तथायित मेवक और साथी के रूप मे गिना कर उनके प्रति प्रभु द्वारा अवगणना के लिए उन्हे मधुर उपालम्भ दिया है, स्वय के प्रति अवगणना का भी उपालम्भ है । परन्तु बाद में स्वत समाधान प्राप्त करके प्रभु के मच्चे स्वरूप को जान कर उन्होंने उनके द्वारा क्रमश. १८ दोपों के निवारण की कथा कह दी है। और अन्त मे समस्त साधको को हिदायत दे दी है कि भगवान या प्रभु आदि के नाम से तथाकथित महानुभावो को केवल 'आडम्बर चमत्कार, या गतानुगतित्व से मत मानो । उनकी १८ दोपो रहित होने की कसौटी करो। पास होने पर ही उन्हे मानो। इस प्रकार यह परीक्षा करके भक्ति या पूजा करने की बात ही फलित होती है।