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परमात्मा से आत्मतत्त्व की जिज्ञासा
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है जब आत्मा क्षणिक है तो सुखदु ख का अनुभव जरा-मी देर मे कैसे सम्भव हो सकता है ? जब आत्मा एक ही क्षण टिकती है तो प्रत्येक वौद्ध शुभाशुभ अध्यवसायपूर्वक क्रिया करते हैं, चार आर्यसत्य, अष्टाा सत्य मादि के पालन की बात भी वे करते हैं, तव फिर शुभाशुम कर्मबन्ध कसे घटित होगा? क्योकि कर्म बंधने वाला तो क्षणभर मे नष्ट हो गया, तथा कर्म से छुटकारा पाने के लिए जो प्रयत्न किया जाता है, वह प्रत्यत्न करने वाला आत्मा भी नष्ट हो गया, तब कर्मों से मुक्ति किसकी होगी ? पुण्यकर्म या पापकर्म करने वाला आत्मा जब क्षणभर मे नष्ट हो गया तो फिर उसका शुभाशुभ फल कोन भोगेगा? 'बुद्धदेव ने ४६ दिन तक समाधिमुख का उपभोग किया' ऐसा उनके सम्प्रदाय द्वारा मान्य पुस्तको मे है। वह क्षणिक आत्मा मानने वाले के लिए कसे सम्मव हो सकता है ? क्योकि ४६ दिनो मे तो कई आत्माएँ बदल चुकी
दूसरी दृष्टि से देखे तो क्रिया से आत्मा के साथ कर्म रज लगते हैं । आत्मा के साथ उन कर्मों का क्षीरनीरन्यायेन बध होता है, आत्मा आत्मा मे स्थिर हो कर ज्ञान-दर्शन-चारित्र, तप आदि क्रिया करता तथा स्वरूपरमण करता है, उससे पूर्वबद्धकर्मों का आत्यन्तिक छुटकारा [मोक्ष] हो जाता है, भला आत्मा को क्षणिक मानने पर वन्ध और मोक्ष कैसे घटित होगे? ___ इस प्रकार एकान्त क्षणिक आत्मा मानने पर उसका बन्ध-मोक्ष, पुण्यजनित कर्मफलस्वरूप सुख या पापजनित अशुभफलरूप दुख उसमे घटित नही हो सकेगा। क्षणिकवादी बौद्ध आत्मा को एक ओर तो 'क्षणिक मानते हैं, दूसरी ओर, आत्मा के वन्ध और मोक्ष को भी मानते हैं। यह वदतो व्याघात जैसी परस्पर विरुद्ध बात है, जो गम्भीरतापूर्वक विचारणीय है, बौद्ध दार्शनिको के लिए। इसीलिए श्रीआनन्दघनजी प्रभु से प्रार्थना . करते हैं--प्रभो । किस प्रकार का आत्मतत्व सच्चा मानू, यह कृपा करके मुझे बताइए।
चतुर्भूतवादियो की दृष्टि मे आत्मतत्व अव श्रीआनन्दघन जी कहते हैं कि दुनिया मे चार भूतवादी भी आत्मा तो मानता है, मगर वह कहता है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु, इन चार