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अध्यात्म-दर्शन
भाप्य
वढे साधक को मन पछाड़ देता है मोक्षमार्ग के अगिलापी जन अपने मन गो एकाग्र करने के लिए मास्त्रों का । स्वाध्याय अध्ययन एव चिन्तन मनन, चर्चा विचारणा करते है। कई लोग भगवान् के भजन मे समय निकालने का अभ्यारा करते हैं। ऐमे शानी और ध्यानी ज्ञान मे तथा ध्यान मे मगगृल रहने का प्रयत्न करते है, वे नमलते हैं कि ज्ञान -ध्यान मे तथा ईश्वरप्रणिधान मे, भजन-पूजन मे तथा तपश्चरण में समय व्यतीत हो जाय तो अच्छा । परन्तु वे ज्यो ही ज्ञान, ध्यान, तपजप का अभ्यास करने के लिए प्रवृत्त होते हैं, त्यो ही मनस्पी दुश्मन कुछ ऐसा विचार करने लगता है कि बडे-बडे ज्ञानी और ध्यानी-जनो को चारो खाने चित्त कर देता है । ज्ञानी ज्ञान मे मस्त होने लगते हैं, या ध्यानी ध्यान मे एकात्र होने लगते हैं, तभी वैरी मन चाहे जहां चला जाता है, जानियो और ध्यानियो के हालवेहाल कर डालता है । ऐसे ही मोक्षमार्ग के अभ्यासी और तपस्वी साधको को । मनरूपी शत्रु बचाता नही, प्रत्युत उन्हें पछाट देता है और इधर-उधर . भटका करता है। भगवन् । आप जानते है कि मेग मन ऐमा है। दूसरो को तो उनका मन भटकाता है सो भटकाता है । मुले भी अपना मन बहुत ही उलटे मार्ग मे भटकाता है । जहाँ सुख की गन्ध भी न हो, वहाँ यह भटका करता है । मैं चाहता हूं कि मुझे मोक्ष मिले, इसके लिए मैं जान, दर्शन, चारित्र और तप की साधना करता हूं, पूर्वगचित पापो को भम्म करने के लिए-निर्जरा के लिए-मैं ज्ञान, ध्यान, और योग का अभ्यास करता हूं, बाह्य-आभ्यन्तर तप भी करता हूं, परन्तु मेरे से ही बना हुआ, मेरे साथ ही रहने वाला मेरा मन कुछ ऐसा खराब चिन्तन करने लगता है, जिसमे मेरा सन्मार्ग टूट जाता है, में दुखमय ससार मे धकेल दिया जाता हूँ। मैं तो मन को अच्छा मानता हूँ मगर यह तो मेरा बैरी बन गया है । मानो, मेरे साथ वैर लेने की इच्छा ते ही मुझे चतुगतिस्प ससार मे भटकाया करता है। यह तो मैंने अपने साथ मन की शत्रुता की बात कही, परन्तु यह किसी को माय रियायत नहीं करता वडे-बड़े ज्ञानियो, ध्यानियो, और तपस्वी माधको के साय भी यह ऊपर कहे अनुसार दुश्मनी करता है।