________________
मनोविजय के लिए परमात्मा से प्रार्थना
३६७
मत कर, जीवात्मा के अनुकूल रह कर मोक्षसाधना मे सहयोगी बन, परन्तु कुमतिस्त्री का भाई यह मन (साला) सारी समझाहट पर पानी फिरा देता है।
यहां फिर एक शका होती है कि मन ऐसा कौन सा जवांमर्द है, जो वडोवडो को पानी पिला देता है, इसी शफा को ले कर श्रीआनन्दघनजी अगली गाथा मे कहते है
में जाण्यु ए लिंग नपु सक, सकल मरदने ठेले । बीजी बाते समरथ छे नर, एहने कोई न झेले हो०॥
___ कुन्यु० ॥मनडु ०७॥
अर्थ
मैंने तो समझा था कि मन नप सकलिंग (नामर्द) है, परन्तु यह तो सारे मर्दो को पोछे ठेल देता है । मनुष्य और सब बातो मे समर्थ है, पर इस मन को कोई समर्थ पुरुष भी पकड़ है नहीं सकता।
नपु सक होते हुए मर्दो को मात कराने वाला मन पूर्वगाथा मे मन के आगे सभी हार खा जाते हैं, यह बात बताई थी, लेकिन श्रीआनन्दघनजी को फिर खयाल आया कि मन तो सस्कृत और गुजराती दोनो भाषामो मे नपु सकलिंग है, इसमे क्या ताकत होगी, नामर्द जो ठहरा । नपु सक व्यक्ति सबसे गयावीता और कायर होता है, वह कोई भी साहस का काम नहीं कर सकता। न वह किसी मर्द से भिड सकता है | उसमे दमखम नही होता । वह तो एक ही धक्के से गिर जाता है। इतना सब कुछ होते हुए भी आखिर मन नपु सरु है, इसलिए मर्दो को यो ही बदरघुडकी दे रहा होगा कि "मैं यो कर दूंगा, त्यो कर दूंगा।" परन्तु जब इसकी ताकत का अनुभव किया तो मेरा अन्तर भी कह उठा-नपु सकलिंग मे इसका प्रयोग भले ही होता हो, परन्तु ताकत में यह नपु सक नहीं है, और न किसी मर्द से पीछे हटने वाला है, बडे-बडे ज्ञानियो, ध्यानियो तक को यह चेलेंज देता है, वटे-बडे पुरुषो को यह बात की बात मे छठी का दूध याद दिला देता है। चाहे जैसे वहादुर आदमी को मन मिनटो मे हरा सकता है। इसलिए मुझे मन की खासियत का