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अध्यात्म दर्णन
अब पता लगा कि व्याकरण की दृष्टि से भले ही इसका प्रयोग नगलिग मे होता हो, लेकिन यह नपु सक किसी भी तरह नहीं है, यह मर्दो का भी मरे है । मेरी जानकारी मन के बारे में यथार्थ न थी, मेरा अनुमान गलत निकला। मैं नासमझी से हमे कमजोर समझ रहा था, लेकिन अब ममल में आया कि जिन वीरनरी ने बडे-बढे पहाडी से मार ली, नदियों को प्रवाही को हाथ से रोक लिये, कुश्ती मे वडे-बटे पहलवानो को हरा दिया, अगले ने बड़ी से बनी पत्रसेना को पराजित कर दिया, वे ही नरवीर बलिप्ट मन के गुलाम बन गए। यह इतना जबर्दस्त है कि वडो वड़ो की पकड़ में नहीं माना । और सब बातो मे समर्थ मनुष्य मन के नागे हार खा जाता है । यह किमी की गिरफ्त में नहीं आता । कदाचित् योडी देर के लिए कोई इसे वहला कर पकड़ भी ले नो भी यह झट छटक कर चला जाता है । क्रिकेट के खेल में जैसे अमुक खिलाडियों के हाथ मे आया हुआ वॉन छटक जाता है, वैसे ही मन भी छटक कर दौड़ जाता है।
अत हे भगवन् । जिन महापुरुपो ने मन को जीता है, उन्होंने आपके बताये हुए मार्ग से ही जीता है, अथवा आपने जिन जिन उपायो से मन को जीता था, उन्ही उपायो से वे महापुरुष इस काले मन से मुक्त हुए हैं। इसीलिए मैं आप से पुकार-पुकार कर कहता हूं कि मैं इस मन को कैसे जीतू ?
अत श्रीआनन्दघनजी निराश हो कर नन्त में अपने अनुभव का निचोड़ अगली गाथा मे अकित करते हैं --
मन साध्यु तेरणे सघलु साध्यु , एह बात नहिं खोटी। एम कहे साध्युते नवि मानु , एक ही बात छे मोटी; हो।
कुन्यु० ॥मनडु ॥८॥
अर्थ जिसने मन को साध लिया, उसने सब कुछ साध लिया, विश्व मे प्रचलित यह कहावत गलत नहीं है। यह एक अटल सत्य है । फिर भी मन को साघे बिना ही कोई यों दावा करे कि मैंने मन को साध लिया है , में उसकी बात मानने को तैयार नहीं । क्योकि एक (मन को वश मे करने की बात ही सबसे बड़ी (दुर्गम) बात है।