________________
दोषरहित परमात्मा की सेवको के प्रति उपेक्षा ४०७ जाय, 'वह निद्रा है, निद्रानिद्रा-जिसमे प्राणी बहुत ही हिलाने, झकझोरने या जोर से आवाज देने पर जागे, उसे निद्रानिद्रा कहते हैं, प्रचला-उठते बैठते नीद आए, उसे प्रचला कहते हैं,प्रचला-प्रचला-चलते फिरते नीद आए, उसे प्रचलाप्रचला कहते हैं। और स्त्यानद्धिनिद्रा-दिन को विचारा हुआ काम रात को नीद ही नीद मे कर ले, उसे स्त्यानद्धिनिद्रा कहते है। निद्रा की ही दूसरी अवस्था स्वप्नदशा है, जिसमे विचित्र-विचित्र स्वप्न अाते हैं, यह भी नीद की ही एक दशा है । इसमे भी निद्रादशा की तरह दर्शन एक बिलकुल जाता है । यह निद्रा भी खराब है। निद्रा लेने और जागने के सम्बन्ध मे तीसरी जागृतदशा है । मनुष्य जागता हो, तव तो सभी चीजो को देख सकता है । उसका दर्शन भी उस समय जागृत रहता है। यह जागृतदशा निद्रारशा से विलकुल उलटी है। और चौथी तुरीय अवस्था होती है। इस दशा मे सतत जागृति होती है, सर्वदा सतत दर्शन भी उपस्थित रहता है। चारो दशाओ मे से किसकी कौन-सी दशा होती है ? यह विंशतिका में बताया है १ मोह अनादिनिद्रा है, भव्यबोधि परिणाम स्वप्नदशा है । जागृतदशा अप्रमत्तमुनियो की होती है। और उजागरदशा- वीतराग को प्राप्त होती है। तीर्थकरो और सिद्धो को उजागरदशा हमेशा रहती है। वे नीद चाहते ही नही । रातदिन सतत जागृत रहते हैं । यहाँ श्री मानन्दघनजी प्रभु को मीठा उपालम्भ देते हुए कहते हैं-"नाथ | आपने जब उजागरदशा (केवलदर्शनमय अवस्था) अपना ली तब आपकी चिरसगिनी निद्रादशा और स्वप्नदशा ये दोनों आपसे पूरी तरह रुष्ट हो गई, उनके साथ आपको चिरकालीन परिचय होते हुए भी आपने उन्हे मनाने का प्रयास भी नहीं किया ।
मतलव यह कि जीव की जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीया, इन चारो अवस्थाओं में से जागृत मे व्यक्ति चर्मयक्षुओ से तमाम पदार्थों को यथार्थ (यथावस्थित) रूप मे देख सकता है, स्वप्न मे जागृत अवस्था मे देखी हुई वस्तुओ को देखता है, सुपुप्ति दशा मे व्यक्ति गाढ निद्रा का अनुभव करता है, देखीसुनी हुई किसी चीज को निद्रा मे नही देख पाता और चौथी तुरीयावस्था होती है, जिसे केवलावस्था या समाधि-अवस्था भी कहा जाता है । इसमे समस्त
१ "मोहो अणाइनिद्दा, सुवणदशा भव्ववोहिपरिणामो।
अपमतमुणी जागर, बागर उजागर वीयराउत्ति ।"