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वीतराग परमात्मा का साक्षात्कार
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कारण यह थक गया, उगे कही नाराम नही गिला । सद्गुरु की परम कृपा से मुझे आपके गुणो का पता लगा । मैंने उनका महत्त्व समझा । अव आपके सिवाय कोई भी उच्चसुख का या विश्राम का स्थान मुझे प्रतीत नही होता।
चौथा कारण प्रियतम वीतराग प्रभु परमात्मा मे मन को रमाने और आश्वस्त-विश्वस्त हो जाने का चौथा कारण श्रीआनन्दघनजी बताते हैं-'वालहो मे परमात्मा अत्यन्त प्रिय हैं।
जो अत्यन्त प्रिय या वात्सल्यमय होता है, उसे देखते ही आत्मीयता जागती है, हृदय मे आनन्द की उमियां उछलने लगती हैं, रोमाच हो जाता है, मन मे मानन्द की अनुभूति होती है, चित्त मे आल्हाद उत्पन्न होता है । सचमुच भक्त साधक को परमात्मा का स्मरण करते ही, या हृदय की आंखो से अन्तर मे उसका स्वस्प निहारते ही अयवा उसका भावपूर्वक दर्शन करते ही प्यार उमड पडता है।
प्रश्न होता है कि जगत् मे इतने पदार्थ हैं, इतने जीव हैं अथवा अपने सम्बन्धी या मित्र हैं, क्या वे प्यारे नही लगते, जो परमात्मा को ही अतिप्रिय बताया गया है। इस प्रश्न का समाधान श्रीमानन्दघनजी प्रथम तीर्य कर की स्तुति मे 'भागे सादि म नात' कह कर कर आए है । यहाँ एक दूसरे पहलू से परमात्मा के प्रियतम लगने का कारण बताते हैं. प्रभो । मैंने अज्ञानवश ससार के अनेक पदार्थों या सम्बन्धियो या मित्रो को अपने प्रिय माने, परन्तु वे सबके सब प्रिय के बदले अप्रिय, स्वार्थी और धोखेवाज निकले । मुझे भोला समझ कर उन्होंने खूव बनाया। किसी ने मेरा (आत्मा का) महत्त्व नही वढाया। जहाँ मुझे पवित्रता दिखाई देती थी, अपवित्रता निकली। असलियत का पता लगते ही उन सबके प्रति मुझे अरुचि हो गई । अब तो मुझे प्रतीति हो गई कि आप ही एकमात्र परम पवित्र और शुद्ध (आत्म) स्वभाव वाले हैं । इसलिए मुझे आप ही आदि रो ले कर अन्त तक प्रिय-~-प्रियतम प्रतीत हुए।
पाँचवॉ कारण आत्मा का आधार परमात्मा मे मन के जम जाने का पांचवां कारण श्रीआनन्दघनजी बताते है- 'आतमचो आधार'। दुनिया मे बहुत से पदार्थों और नाते-रिश्तेदारो को