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परमात्मा से शान्ति के सम्बन्ध मे समाधान
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इस प्रकार शुद्ध आलम्बन ले कर मात्विक वृत्ति से युक्त होने से साधक आध्यात्मिक शान्ति को पा लेता है, शान्ति उसकी सहचरी बन जाती है, शान्तिस्वरूप को वह हृदयगम कर लेता है और दूसरो को भी शान्ति प्रदान करता है। अब इसमे आगे के शान्ति के सोपान के बारे मे कहते हैफल-विसंवाद जेहमा नहीं, शब्द ते अर्थ-सम्बन्धी रे। सकलनयवाद व्यापी रह्यो, ते शिवसाधनसन्धि रे।
शान्ति ॥६॥ अर्थ जिसके मन मे मोक्षरूप फल [कार्य] के सम्बन्ध में कोई विसवाद [दुविधा नहीं है, जिसके कहे हुए शब्द और उसके अर्थ के सम्बन्ध में कोई विरोध नहीं है, जिसके वचनो मे सर्वत्र समस्त नयवाद [सापेक्षता] व्याप्त है, ऐसे आप्तपुरुष के वचन मोक्षप्राप्ति की साधना मे कारणरूप हैं।
भाष्य
शान्ति-सहायक मोक्षफलावञ्चकयोग आप्तवचन पूर्वगाथा मे शुद्ध आलम्बन की बात कही गई थी। परन्तु शुद्ध आलम्बन तभी शुद्ध रह सकता है, जब ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि के पालन से विषय मे नि शक, निर्विवाद, सापेक्ष, सार्थक-शब्दयुक्त आप्तवचनो का आलम्बन लिया जाय । वही शान्तिदायक, शान्तिसचारक हो सकता है।
शान्ति के लिए फल के प्रति अविसवादिता आवश्यक ज्ञानादि की अयवा आत्मम्बम्पलक्ष्यी जो भी साधना की जाय, उसमे फल के प्रति शका या असगति मन में नहीं होनी चाहिए। जहाँ फलाकाक्षा या फन के विषय मे शका या भ्रान्ति मन में होती है, वहाँ साधना का रस खत्म हो जाता है, साधना के साथ जो श्रद्धा, भक्ति का आनन्द है, उसका स्थान बेगार ले लेती है । अत शान्ति के अभिलापी साधक को यह णका नही होनी चाहिए कि इस माधना का फल मिलेगा या नहीं, फल नही मिला तो