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१६ : श्रीशान्तिनाथ-जिन-स्तुतिपरमात्मा से शान्ति के सम्बंध में समाधान
(तर्ज-चतुर चोमास पडिकमी, राग मल्हार) शान्तिजिन । एक मुज विनति, सुणो त्रिभुवनराय रे ! शान्ति-स्वरूप किम जाणीए, कहो मन किम परखाय रे ?
॥शान्ति० ॥१॥
अर्थ । सोलहवें तीर्थंकर श्रीशान्तिनाथ जिन (परमात्मा) | मेरी आप से एक विनति है, हे त्रिभुवन के राजा ! उसे सुनिये वह यह है कि शान्ति का स्वरूप क्या है ? उसे कैसे जाना जाय ? और यह भी बताइए कि उस शान्ति की परख मन से कैसे हो सकती हैं ?
भाष्य
शान्ति के सम्बन्ध मे प्रश्न क्यो ? यह स्तुति वीतराग शान्तिनाथ परमात्मा की है। प्रभु का नाम शान्तिनाथ है, इसलिए श्रीआनन्दघनजी को शान्ति का स्मरण हो आया और उन्होंने इस स्तुति से माध्यम से शान्ति के विषय मे विविध प्रश्न उठा कर उनका समाधान ढूंढने की कोशिश है ।
श्रीआनन्दघनजी आध्यात्मिक साधको के प्रतिनिधि है । जगत् मे समस्त प्राणी शान्ति चाहते हैं। मनुष्यो मे सभी वर्ग और कोटि के लोग अपनी-अपनी भूमिका और कल्पना के अनुसार शान्ति की चाह रखते है। कई लोग इष्ट भौतिक पदार्थों या इन्द्रियविषयो की प्राप्ति मे शान्ति मानते हैं, परन्तु आगे चल कर जव उनका वियोग हो जाता है या प्राप्त होने पर भी इन्द्रियो की शक्ति क्षीण या दुर्बल हो जाती है तो शान्ति दूरातिदूर होती चली जाती है, या अमुक इष्ट वस्तु स्वय को न मिल कर दूसरे को मिल जाती है, या दूसरे को उपभोग करते देखता है तो मन ईर्ष्या और द्वेप से अशान्त हो जाता है, इसलिए कभी आधिदैविक, कभी आधिभौतिक और कभी आध्यात्मिक इन