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अध्यात्म-दर्शन
मैंने आधार गूत गाने, किन्तु वे सब गु निराधार छोड़ कर चले गए, किनाराकमी कर गए, नंट के गमय मुझे (गेरी आत्मा को माश्यागन देने वाले, मुझ मे आत्मविश्वास जगाने वाले कोई भी नहीं रहे । इसलिए अत्ततोगत्वा मुझे आपके सिवाय कोई भी आत्मा का आधार नही जवा। आपके आधार पर रहने वाले व्यक्तिः यो माग गाथा ग्यास वा मन तनानादिचतुष्टय का सुरा मिलता ही है।
इन गब कारणो को ले कर श्रीआनन्दघनजी ने परमात्मा हो मात्मा ने लिए समर्थ म्यागी, परग-उदार, गन विश्रामी, प्रियतम और आधारभुत बताया। गनमुन, नगार के विविध ताप की ज्वाला में गुलसने ?ए प्राणी के लिए परमात्मा का ही आधार है, वरी सकारण का है, जहनुमा गि, निकाम प्रेरक या मार्गदर्शक हैं, निग्या विश्ववराल है। अब अगली गाथाओ मे परमात्मा के दर्शन के अनेक नाम बताते है
दरिसण दीठे जिनतण रे, संशय न रहे वेध।। दिनकर करभर पसरतां रे, अन्धकार-प्रतिषेध ॥
विमल० ॥॥
अर्थ श्रीवीतराग परमात्मा (शुद्धआत्मस्वस्प) के दर्शन होने से किसी भी प्रकार के विरोध या विघ्न की शका नहीं रहती। जैसे सूर्य की किरणो का जाल फैलते हो अन्धकार (रुक नष्ट हो) जाता है। वैसे ही आपके दर्शन होते ही अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है।
भाष्य
वीतरागप्रभु के दर्शन का साक्षात्फल पूर्वगाथाओ मे वीतराग-परमात्मा के दर्शन में पहले की भूमिका के रूप मे उनके चरणकमल मे लीनता और रासार की श्रेष्ठनम मानी जाने वाली वस्तुओ के प्रति उदासीनता का दिग्दर्शन किया गया था, इस गाथा में परमात्मा के दशन का साक्षात्फल बताते हुए गूर्यकिरणो की उपमा दी है।
जैसे सूर्य की किरणो के फैलते ही घोर से घोर अन्धकार भी नष्ट हो जाता है, ___वैसे ही प्रभु के दर्शनो की प्राप्ति होते ही मन मे चाहे जितने बहम, शकाएं, .