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मध्यान्म-दर्शन
___ आगे की गाथा प्रे परमात्मगेवा की फिर दुलंगता भूचित की हैवचननिरपेक्ष व्यवहार झूठो कहो, वचनसापेक व्यवहार साचो। वचननिरपेक्ष व्यवहार संसारफल, सांभली आदरी कोई राचो॥
धार० ॥४॥
अर्थ जिन प्रवचन (परमामा की आना की, निश्चय दृष्टि में आत्मतत्त्य फी अपेक्षा से रहित, विसंगत व्यवहार (धार्मिक आचार) मिथ्या है, परमात्मवचन से साथ वचन (आत्मतत्त्व) से निरपेक्ष व्यवहार ससारस्प फल का प्रदायक है । ऐसा सुन कर उसे आदर क्यो देते हो ? उममे पयो फंसते हो ?
भाष्य
वचननिरपेक्ष और वचनसापेक्ष व्यवहार वीतराग परत्मामा के अनेकान्तवाद मे मने व चन या प्रवचन अथवा आत्मतत्त्वलक्ष्यी वचन मे मापेक्ष व्यवहार ही वास्तव में जिनाना का अनुगरणकर्ता होने से मच्चा है। यहां व्यवहार का अर्थ व्यवहारचारित्र यानी धामिक आचारविचार से है ।' जो व्यवहार घाजित एक तत्त्वज्ञपुरुषो द्वारा इहलोक मे सदा आचरित होता है, उस व्यवहार का आचरण करता हुआ साधक निन्दा का भागी नहीं बनता । जैनागमो में पांच प्रकार का व्यवहार बताया है-आगमव्यवहार, श्र तव्यवहार, आज्ञाव्यवहार, धारणाब्यवहार और जीतव्यवहार । ये पांचो व्यवहार जैनसाधुवर्ग के वाह्याचारो तथा विधानो से सम्बद्ध है। ऐमे साध्वाचार-सम्बन्धी विधानो का वर्णन व्यवहार मूत्र आदि में मिलता है। पाचो मे से कोई भी व्यवहार सूत्रचारित्रस्प-धर्म से अनुप्राणित हो वही वचन सापेक्ष व्यवहार कहलाता है, जो व्यवहार जिनप्रवचन, वीतराग-मिद्धान्त या निश्चयनय मे सम्मत न हो, वह निरपेक्षव्यवहार है।
समग्र जैनदर्शन नयवाद पर आधारित है। एक बात एक दृप्टिविन्दु मे सच्ची होती है, वही दूसरे दृष्टिविन्दु से बिलकुल उलटी प्रतीत होती है ।
१ जैसे कि उत्तराध्ययनमूत्र में कहा है
धम्मज्जिय च व्यवहार, बद्ध हाऽयरिय सदा। तमायरतो ववहार, गरहं नाभिगच्छई ॥
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