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वीतराग परमात्मा का साक्षात्कार
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वह व्यक्ति आश्वस्त हो जाता है । वह किसी से घबराता, डरता, या सकट मे चित्लाता नही, इसी प्रकार यहाँ भक्त को भी परमात्मारूपी नाव (स्वामी) का जबर्दस्त आधार मिन्न जाने पर उसे किसी से डरने, घबराने या चिल्लाने की जरूरत नहीं । और फिर परमात्म मक्ति एव दर्शन से जब व्यक्ति के जीवन मे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, व्रत, नियम, सयम आदि चारित्रगुण आ जाते है तो उसे सच्चेझूठे की पहिचान हो जाती है, वह मुदेव, सुगुरु और सुधर्म की प्राप्ति कर लेता है, उसे अच्छे सत्सगी मिल जाते है, परिवार, समाज और राष्ट्र भी उसके अनुयू न हो जाते हैं । व्यवहारिक दृष्टि से सुख और सम्पत्ति मिल जाने पर उसे किसी दीन-हीन या तुच्छ व्यक्ति के सामने हाथ पसारने और उसकी जीहजूरी करने की जरूरत नहीं रहती।
परमात्मदर्शन से मनोवाछित कार्यसिद्धि और फिर श्री आनन्दधनजी वस्तुतत्व को जान लेने तथा निश्चयदृष्टि से पूर्वोतरीति से परमात्मदर्गन हो जाने पर और सम्यग्दर्शन-ज्ञानरूप आत्मिक सुख-सम्पत्ति प्राप्त हो जान पर कृतार्थ हो कर अपनी मस्ती मे बोल उठते है'मारा सोध्या वाछित काज' मेरे मनोवाछित कार्य सिद्ध हो गए। मुझे परमात्मदर्गन के दुष्करकार्य में सफलता मिल गई । जिस आत्मिक गुखसम्पदा को प्राप्त करने का मेरा मनोरथ था, वह सिद्द हो गया । व्यवहारहष्टि से भी परमात्मा के दर्शन एव भक्ति करके उन्हे स्वामी बना लेने के बाद उनकी आज्ञानुसार सम्यग्दर्शन-जान-चारित की आराधना से दुख, दुर्भाग्य, दुश्चिन्ता आदि सब दूर हो कर मुख-सम्पदा मिल जाने से सभी मनोवाचित कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
अव श्रीआनन्दघनजी परमात्मा के सागोपाग दर्शन के हेतु सर्वप्रथम उनके चरणो के दर्शन की महत्ता बनाते है
चरणकमल कमला बसे रे, निर्मल थिरपद देख। समल अस्थिर पद परिहरे रे, पकज पामर पेख ।
॥विमल० ॥२॥
अर्थ
आपके चरण-चारित्ररूप चरणकमल मे अथवा बाह्यचरणकमल' मे, कमला (ज्ञानलक्ष्मी, आत्मगुणसम्पत्ति अथवा अप्टमहाप्रातिहार्यरूप लक्ष्मी) घातीकर्म --मलरहित (निर्मल) और स्वभाव में स्थिर पद (आत्मस्थान) देख