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अध्यात्म-दर्शन
वाली वन्तुओ मे नही नुभाता? उगके कुछ कारण तो हम पर स्पष्ट कर आए ह. ग गाया मे परमात्मचरण मेनियर गगन मिनिट ताग गाा
प्रथम मारण : ममथं चामो परमात्मा परमात्मा के चरण में पिर होने , यहां जो बनाए हैं, उन कारणो को देखने ने आत्मा और परमानगा गं म्यामी-भयक-नन्या प्रतीत होता है । यानी मामा को निम्न जोर परमात्मा को जानन अथवा मात्मा को पहाट की ननस्टी पर डेटा जोर परमात्मा को उनकी चोटी पर बैठे हुए मान कर जात्गमाइक पता अपने आपो उनो नरण गेलीन कर देना है। गेवता बन कर उनकी शरण स्वीकार करता है।
प्रश्न होता है कि रक्य मेवा, धन कार परमात्मा Tो यामी चना ने मान गे भक्त को निश्चिन्ता, गावरा, निगंय आर जानन्दित हो गाना है ? इनी का गमाधान माहव समरथ तू धणी रे' पद के अन्तर्गन आ जाता है ! जमे फिमी लीकिय वीर पुप की शरण मे जागे अथवा मिनी बैंगवशाली नगर्थ
यक्ति को म्वामी बना लेगे पर उग पर जिम्मेवारीमा जाती है कि शरणागत सेवक पर कोई नकट या आफा, आ जाय या कोई व्यनिहाला करे तो वह जीजान से उनवी रक्षा करे। इसी प्रकार अध्यात्मरमिक नाधक (मानन्दधनजी) ने भी प्रगु की तरण गे जाकर उनको स्वामी बना लिया है, इसीलिए वे भगवान पो समर्थ रवागी बना कर मारवल हो गए हैं कि पशु आग ही गैर समर्थ स्वामी है, इसलिए आप पर (निश्चयदृष्टि में शुद्ध एवं अनन्त शक्तिमान होने से नमर्थ मात्नदेव की शरण मे जाने पर) जिम्मेदारी आ जाती कि वे शरणागतरक्षक के विरद का विचार करो मेरी आत्मा की रक्षा करें। आप जैसे समर्थ पुरुप का मेरे हृदय में ध्यान रहने से मुस पर कोई भी शत्रु (आत्मिक रिपु = रागद्वे पादि) हमला नहीं कर सकते । मेरा कोई कुट भी विगाड नहीं ममता । दुनिया मोहराजा के राग-द्वेप, काम, त्रोध आदि अनुचरो को शत्र-समान और बलवान मानती है, वे इन्द्र, नरेन्द्र आदि को हैरान करते हैं, विविध योनियो मे नाना प्रकार की यातना दे कर सताते है । परन्तु आप जिनके हृदय में विराजमान हैं, उन्हें कोई भी परेशान नहीं कर