________________ 236 अध्यात्म-दर्शन वे झूटी प्रतिष्ठा ये मोह गेप कर मुठी स्तुको परमाने। और न ही सठी सिद्ध होने वाली बग्नु को पूर्वाग्रहाग सन्नी मिट्ट करने की कोशिण करते हैं। सच्चे आध्यात्मिक पुगपती, नोकिनी गर्ग-निगन या मृताहिजे मे न आ कार, किसी ने गयभीत न होकर का नाम: उने उमी पगे गोगह जामा प्रगट करने। पाहे उन कोई गाल में पूछ लो, चाहे मेरी सभा में पछ नो, ये गोय ही जागा तो, पम्तो गत्यस्वन्प को प्रगट करने में पानी हिचकिचाएंगे नती, न उगे छिपाने का प्रयत्न करेंगे। गच्ने आध्यात्मिा. मग लक्षण के मिया बाती के जी भी'लोग अध्यात्म मा हाल पीटने वाले हैं, या अध्यात्म तीन नगा पर भोली जनता को उलटी-सीधी बात गमता कर आध्यानिमक होने का दावा करते है या आध्यात्मिा के नाम से प्रसिद्ध हो जाते हैं, उन्हे, बाना नमाना चाहिए। किन्तु जो यथार्थप गे वन्नुतत्व का प्रकागन ने है, ये जानन्दमय आत्मा के मत (अध्यात्ग) में म्यायी स्पगे टिक जाते हैं। वे जायात्मिकता गे पनित या गलित नहीं होने, गा के लिए स्थिर हो जाने हैं। सारांश श्रीधेयामनायजिन (परमागा) की स्तुति के माध्यम से श्रीनागन्यमानी ने परमात्मा को पूर्ण आध्यात्मिक और आत्मरामी, नागी, अन्नाती व मोक्षगामी यता पर परमात्मपद-प्राप्ति के लिए उन आदर्श गुनित करणे तत्पश्च त् मात्मरामी एव अध्यात्म का लक्षण, अध्यात्म का विश्लेपण, और अन्त मे मच्चे आध्यात्मिक की पहिचान बता कर अध्यात्मशास्त्र का नवनीत प्रस्तुत कर दिया है। वास्तव में पूर्ण अध्यात्मदशा को प्राप्त करने के लिए मच्चा आध्यात्मिक वन कर आत्मोत्थान के शिखर तकः क्रमश पहचना आवश्यक है।