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अध्यात्म-वर्णन
यहाँ 'रणरोज' का अर्थ अरारोदन धिमा गगन प्रतीत होता है। उग दृष्टि गे अर्थ होगा--सुदरयात्री ही वन में होने वाली दमा के गमान उक्त अध्यात्मयात्री की दशा ममारस्पी बन ग हो जाती है। घोर अटी पार करके जाने वाला यात्री अगर उग अटबी में पानी-पानी पुकान्ता है तो उनकी प्याम जब नहीं बुजती, तब आखिर वह हार-यक कर पानी ने नाग ने जो भी चीज मिल जाती है, उसे पी कर मन को मना लेना है, मगर उनमें उग यात्री की प्यास बुझती नहीं, इसी प्रकार मसारस्पी धीर भटवी पार कर जाने वाला अध्यात्मयानी भी परमात्मा के सम्यग्दर्शन की पास लगने पर दर्शनदर्गन शब्द की रट लगाता है, और जब उने सन्चा दर्शन नहीं मिलता, तब आखिरकार हार-यक कर वह जो भी 'दर्शन' मिल जाता है, उसे ही मच्चा मान कर मन को बहलाता है, लेकिन उसकी सद्दर्शन की जो प्यान थी, वह मिटनी नहीं । फलन प्यास बनी की बनी रहती है । यह ठीक उसी तरह है, जैसे किमी को अमृत पीने की इच्छा हो, वह अमृत के वदने अमन के नाम गे विपपान कर ले, अथवा गगाजल मे अवगाह्न करने की इच्छा वाला व्यक्ति तलैया के गदे व छिछले पानी में अवगाहन कार ले । या गुलाब के सुगन्धित फूल के बदले गुलाबी रंग के निर्गन्ध टेनू के फूल प्राप्त कर ले । कई वार अशदर्शन (आगिक मत्य) विषपान जैसा बन जाता है, उगी को सवाशदर्शन (मत्य) मान कर प्राणी वही फा जाता है, उसका जागे का विकास या गुणस्थानक्रम रक जाता है । जमल मे जमृत-दर्शन का अर्थ हैअमर होने का दर्शन । वाह्य क्रियाकाण्ड से अनुप्राणित या भौनिक दान अथवा लौकिक सुखो की पूर्ति करने वाला दर्णन अमरता या अमृन का दर्शन नहीं है । उगमे चाहे स्वर्गप्राप्ति हो जाती हो, या मनुष्यगनि प्राप्त हो जाती हो, मगर है यह जन्ममरण का चक्र, समार (मत) की प्राप्ति ही। इगलिए जिस जन्ममरण के चक्र से मुक्त हो कर अमृतत्व के दर्शन पाने या उन परमात्मा के अमृतत्व के दर्शन पाने की इच्छा है, वह स मृतत्व (जन्म-गरण के) चक्र मे फैमाने वाले दर्शन को पकाउ ले तो उसके लिए यह विषपान तुत्य ही होगा। उसकी अमृतपिपासा उस विषपानतुल्य विपरीत दर्शन, समारमार्ग मे भटकाने वाले कुदर्शन या भौतिक दर्शन में कैसे मिट मकती
कई वार सामान्य माधक यह मान लेते हैं कि वीतराग देव, पंचमहाव्रती