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पूर्वोक्त अगपूजा का यह वर्णन गवहारगरी अपेक्षा ग प्रत्यष्टि ने इक्षा। ____ अव निश्चयनय की अपेक्षा ने 'भावपूजा गी दृष्टि गे जब नग जग-पूजा पर विचार करते हैं तो मा मालूम होता है कि वीनगग-पगगाना की अगपूजा के लिए निचयनय की दृष्टि में ये बता गौण है। ये यांनी चीजें जय है उनसे चेतना के महाप्राण की गजा मारमा विग गन्नपूर्ण नही लगना । क्योकि प्रत्येक द्रव्य ग्वनन है। एक द्रव्य गेनो व्य का गुच्छ मना-युग (निश्चय मे) नहीं हो मकना। निश्चयनय की दृष्टि गे पुष्प अक्षत धुप आदि पचद्रव्य परमात्मपुजा के लिए न भी लिये जाय को भी मानसिक चिन्तन के द्वारा प्रकारान्तर में भावपुप्प-ज्ञानदीप आदि हाग मानपूजा का जा सकती है। अत. शुभभावो ने उदवोधन के लिए उन्हें प्रतीक मान कर अपनाये जाय तो भावपूजा की दृष्टि से अगपूजा गफल हा मकती है। जैने पुप्प के सम्बन्ध में जनजगन् के उद्भट विद्वान् आवाचं हरिभद्रमूरि ने अप्टक मे आठ सत्पुप्प बताए है-.-'अहिमा, सत्य, जत्तय, ब्रह्मचर्य, अमगता, गुरुभक्ति, तपस्या और ज्ञान । भगवान् के चरणों में ये फूल चढाइए। इसी तरह वीतराग-परमात्मा की अगपूजा के लिए बात्मा र अखण्ड शुद्धस्वरूपमय शुक्लध्यान में मन्त हो जाइए। सुगन्धित पदाथा से परमात्मा की पूजा करनी हो तो आत्मा के अनुजीवी गुणो स्पी सुगन्धित पदार्थो से कीजिए।
धर्मध्यान की धूप दे कर अपने और आमपाग के जीवन और जगत् के वातावरण को सुवामित कर दीजिए।
मम्यग्ज्ञान में वृद्धि कीजिए, शास्त्रज्ञान, श्रुतज्ञान एव मतिज्ञान वढाइए। आत्मा को ज्ञानदीप से आलोकित कीजिए। यही दीपकपूजा का तात्पर्य है । आत्मा को स्वरूपनान मे स्थिर करने, स्वभाव मे रमण कराने एवं अपने शुद्धस्वरूप मे श्रद्धा करने का प्रयत्न कीजिए यही निश्चयदृष्टि से पचएका अगपूजा है। श्रीआनन्दधनजी ने जगली गाथा में पूर्वोक्त पन पकारी अगपूजा का फल वताया है
१ अहिंसा-सत्यमस्तेय-ब्रह्मचर्यमसंगता ।
गुरुभक्तिस्तपो ज्ञानं सत्पुष्पाणि प्रचक्षते ॥-हरिभद्रीय अप्टक ,