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अध्यात्म-दर्णन
किसी योग्य समय पर फल देते हैं. तव रामसा जाता है कि अमुवा कार्या या उदय हुआ। गार्मोदय के कारण घोंग-बैग पन भोगने पडते? इसका भी पता उदय से लगता है।
उदीरणा-जिन कर्मों का उदयकाल अभी तक नही आया, उन उदीरणायोग्य कर्मो को किमी अनुष्ठानविशेप या प्रनग विशेष के निमिन से कर्मफल शीघ्र भोगे जाने की योग्यता पैदा हो जाना और फताभिमुप होने पर उनका भोगा जाना तथा फल दे कर निवृत्त हो जाना चौकी उदीरणा कहलाती है। उदीरणा मे देर में फल देने वाले कर्म बहुत ही जल्दी फल देने योग्य बन जाते हैं। कोन-रो गुणन्यान में कितने गार्मों की उदीरणा होती है इसका विचार कर्मग्रन्य आदि मे इसी के अन्तर्गत बताया गया है।
सत्ता-उदयकाल से पहले जो कर्ग आत्मा साथ लगे रहते है, भोगे नही जाते, जो कर्मफल देने ले लिए नाख नहीं जाए। फिर भी उनमे फल देने की शनि है, वे अभी स्टॉक में पटे हैं उन्हें सत्ता कहते है। किस गुण-स्थान में कितने कर्मों की मना है. उमना भी विचार मी के अन्तर्गत है।
इस प्रकार कर्मों के वध, उदय, उदीरणा और सत्ता कब, कौनमे गुणस्थान में, और कंगे होते है ? इस विषय में भलीभांति समझना चाहिए।
प्रकृतिवन्ध आदि से ले कर सत्ता तक की जो बातें कर्म के सम्बन्ध मे यहां बताई गई है, वे इसलिए कि साधक इस बात को भलीभांति दिल मे विठा ले कि कि इन कर्मों के कारण ही उसके और परमात्मा के बीच में जुदाई है, अलगाव है । अत अव वह आत्मसाक्षी मे सीधा पुस्पार्थ करने लग जाय, इसी से उमके उक्त कर्मबन्धों, मूल-उत्तर कर्मप्रकृतियो, घाती-अघाती कर्मो, वन्ध, उदय, उदीरणा और सत्तारुप कर्मों को काटने का पुस्पार्थ सफल होगा। और
१ वन्ध, उदय, उदीरणा और सत्ता इत चारो के विपय मे दूसरे कर्मग्रन्थ, प्रज्ञापनासूत्र, कम्मपयटी, गोमटसार आदि मे विस्तृत चर्चा है । पाठक वही से देख लें।